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आएस-आकिट्टि
पाइअसहमहण्णवो
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देश] १ उपदेश शिक्षा ।
योग्य (विसे २३) ।।
प्रदेश
आएस पुं[आदेश १ अपेक्षा। २ प्रकार, आओग्ग पुं [आयोग्य परिकर, सरंजाम आकंपण न [आकम्पन] ऊपर देखो (वव: रीति (णंदि १८४)। ३ वि. नीचे देखो (पिंड । (औप)
धर्म)।। २३०)
आओज पुंन [आयोग्य] वाद्य, बाजा (महा; आकंपिय वि [आकम्पित] ईषत् चलित, आएस देखो आवेस (भग १४, २)TV षड्)।
कम्पित (उप ७२८ टी)। आएस पुं[आदेश १ उपदेश, शिक्षा। | आओज्ज विआयोज्य संबन्ध-योग्य, जोड़ने
वापित प्राजिल पमध आएसग) २माज्ञा, हुकुम (महा)। ३ विवक्षा, योग्य (विसे २३)/
किया हुआ (पिंड ४३६) सम्मति (सम्म ३७)। ४ अतिथि, मेहमान | आओड सक [आ + खोटय् ] प्रवेश
| आकड्ढ पुं [आकर्ष] खींचाव । विकड्ढि (सूम २, १, ५६) । ५ प्रकार, भेद; 'जीवे णं कराना, घुसेड़ना। आप्रोडावेंति (विपा १,६)।।
स्त्री ["विकृष्टि] खींच-तान (भग १५)। भंते ! कालाएसेणं कि सपदेसे अपदेसे' (भग ६, | आओडण न [आकोलन] मजबूत करना (से ४. जीव २; विसे ४०३)। ६ निर्देश (निचू)। | ६, ६) .
आकडूढण न [आकर्षण] खींचाव (निचू) V ७ प्रमाण, 'जाव न बहुप्पसन्नं ता मीसं एस आओडिअ वि [दे] ताडित, मारा हुआ (से
आकड्ढिय वि [दे] बाहर निकाला हुआ, इत्थ पाएसो' (पिंड २१)। ८ इच्छा, अभि- ६, ६)।
'पुव्वं व वच्छ तीए निब्भच्छिया लाषा; देखो आएसि। ६ दृष्टान्त, उदाहरण | आओध प्रक[आ+ युध् ] लड़ना। प्रायो
ता परित्तु गलयम्मि। 'वाघाइयमाएसो प्रवरद्धो हुज अन्नतरएणं' | धेहि (वेणि १११) ।
पच्छिमप्रसोगवरिणयादारेणाकड्ढिया (प्राचानि २६७)। १० सूत्र, ग्रन्थ, शास्त्र आओस सक [आ+ कुश, कोशय ]
झत्ति॥ (धर्मवि १३३)(विसे ४०५)। ११ उपचार, पारोप; 'पाएसो आक्रोश करना, शाप देना। आप्रोसइ (निर १,
आकण्णण न [आकर्णन] श्रवण (नाट) उवयारो' (विसे ३४,८८)। १२ शिष्ट-सम्मत, १) प्रामोसेजसि, पाप्रोसेमि (उवा)। कवकृ. आकण्णिय वि [आकर्णित] श्रुत, सुना 'बहुसुयमाइएणं तु, आओसेजमाग (अंत २२)।।
हुआ (प्राचा) न बाहियगणेहिं जुगप्पहाणेहिं। आओस पुं[दे] प्रदोष-समय, सन्ध्याकाल
आकदि देखो आकिदि (संक्षि )। आएसो सो उ भवे, (प्रोध ६१ भा)
आकम्हिय वि [आकस्मिक] अकस्मात होने. अहवावि नयंतरविगप्पो' (वव २,८)- आओसणा श्री [आक्रोशना] निर्भर्त्सना,
वाला, विना ही कारण होनेवाला; 'बज्झनिआएसण न [आदेशन] ऊपर देखो (महा) तिरस्कार (निर १, १)।
मित्ताभावा जं भयमाकम्हियं तंति' (विसे
३४५१) आएसण न [आदेशन, आवेशन] लोहा | आओहण न [आयोधन] युद्ध, लड़ाई (उप वगैरह का कारखाना, शिल्पशाला (आचा २, ६४८ टी; सुर ६, २२०)।
आकर पुं [आकर] १ खान। २ समूह २,२,१०; प्रौप)
| आंत वि [अन्त्य] अन्त का (पंचा १८,३६)M आएसि वि[आदेशिन] १ आदेश करनेआकंख सक [आ + काळे ] चाहना, आ
| आकस देखो आगस । माकसिस्सामो (प्राचा वाला । २ अभिलाषी, इच्छुक (प्राचा)। इच्छना । प्राकंखिहि (भवि)
__२, ३, १, १५) हेकृ. आकसित्तए (पाचा आकंखा स्त्री [आकाङ्क्षा] चाह, इच्छा,
२, ३, १, १५) आएसिय वि [आदिष्ट] जिसको आज्ञा दी अभिलाषा (विसे ८५६)
आकार देखो आगार (कुमाः दै १३)। गई हो वह (भवि)। आकखि वि [आकाङ्क्षिन] अभिलाषी,
आकास देखो आगास (भग)। आएसिय वि [आदेशिक] १मादेश संबन्धी। इच्छुक (प्राचा)
आकासिय वि [दे] पर्याप्त, काफी (षड्) 1V २ विवाह आदि के जिमन में बचे हुए वे | आकंद अक [आ + क्रन्दु रोना, चिल्लाना।
आकिइ स्त्री [आकृति] स्वरूप, प्राकार (हे खाद्य-पदार्थ जिनको श्रमणों में बांट देने का माकंदामि (पि ८८)।
१, २०६)। संकल्प किया गया हो (पिंड २२६) आकंदिय न [आकन्दित] १ माक्रन्दन, रोदन।।
| आकिंचण न [आकिश्चन्य ] निस्पृहता, आओ प्र[दे] अथवा, या; 'हंत किमेयंति, ! २ वि. जिसने आक्रन्दन किया हो वह (दे ७,
निष्परिग्रहता; 'प्राकिंचणं च बभं च जइकि ताव सुविणो, पामो इंदजालं, आप्रो २७)।
धम्मो' (नव २३)IV मइविन्भमो, पामो सच्चयं चेवत्ति' (स ४५४)।
आकंप प्रक [आ + कम्प्] १ थोड़ा काँपना। आकिंचणया स्त्री [आकिश्चनता] ऊपर आओग पुं[आयोग] १ लाभ, नफा (प्रौप)। २ तत्पर होना । ३ पाराधन करना । संकृ.। देखो (सम १२०) iv २ अत्यधिक सूद के लिए करजा देना (भग)। आकंपइत्ता, आकंपइत्तु (राज)।V आकिंचणिय। देखो आकिंचण (पाचू, सुपा ३ परिकर, सरंजाम (प्रौप)।
आकंप पुं [आकम्प] १ थोड़ा काँपना । २ आकिंचन्न ६०८)TV आओग पुं [आयोग] अर्थोपाय, अर्थोपार्जन माराधन (वव )। ३ तत्परता, पावर्जन | आकिट्रि स्त्री [आकृष्टि ] पाकर्षण (धर्म का साधन (सूम २, ७, २)TV (राज)
वि १५)।
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