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१०० पाइअसहमहण्णवो
अहुल्ल-आ अहुल्ल वि [अफुल्ल अविकसित (कुमा)। केवल शास्त्र ही प्रमाण माना जाता हो ऐसा य सिवाभिलासिणों (पउम ३१, १२८ परह अहुवंत वकृ [अभवत् ] न होता हुआ वाद (सम्म १४०)।
२,१)। (कुमा)।
अहेउय वि [अहेतुक हेतुवर्जित, निष्कारण | अहो प्रअहो] इन अर्थों का सूचक अव्यय-- अहूण देखो अहीण = प्रहीन (कुमा)। (पउम ६३, ४)।
१ विस्मय, प्राश्वर्य । २ खेद, शोक । ३ आमअहूव वि [अभूत] जो न हुआ हो पुब्ध अहेकम्म पुन [अधःकर्मन] १ अधोगति में | न्त्रण, संबोधन । ४ वितकं । ६ प्रशंसा।६ वि [पूर्व] जो पहले कभी न हुमा हो (कुमा)। ले जाने वाला कर्म। २ भिक्षा का पाषाकर्म असूया, द्वेष (हे २, २१७ प्राचाः गउड)। अहे प्र[अधस् ] नीचे (प्राचा)। कम्म दोष (पिंड ६५)।
दाण न [दान] पाश्चर्य-कारक दान (उत्त न [कर्मन् प्राधाकर्म, भिक्षा का एक दोष | अहेसणिज्ज वि [यथैषणीय संस्काररहित,
२ कप्प)। पुरिसिगा, 'पुरिसिया स्त्री (पिंड)। काय पुं[काय शरीर का नीचला | कोराः 'अहेसरिणजाई वत्थाई जाएजा' (प्राचा)। [पुरुषिका] गवं, अभिमान (स १२३; हिस्सा (सूप १, ४, १)। 'चर वि [चर] अहेसर पुं [अहरीश्वर] सूर्य, सूरज (महा)।
२८८)। विहार पु[विहार] संयम का बिल आदि में रहने वाले सर्प वगैरह जन्तु | अहो देखो अह = अधस् (सम ३६; ठा २, २ माश्चर्यजनक अनुष्ठान (प्राचा)। (आचा)। तारग पुं [तारक] पिशाच- ३, १; भग; णाया १, १; पउम १०२, ८१% | अहो प्र[अहो] दीनता-सूचक अव्यय (अरण विशेष (पएण १) । दिसा स्त्री [ 'दिक् ] आव ३)।
१९)। नीचे की दिशा (आचा)। लोग [लोक] करण न [करण] कलह, झगड़ा (निन् । अहो पुन [अहन दिन, दिवस (पिंग)। पाताल-लोक (ठा २, २)। वाय पुं[°वात] १०)। गइ स्त्री [गति] १ नरक या तिर्यश्च. | "णिस, निस, निसि न ["निश] रात और नीचे बहनेवाला वायु (पएण १)। २ अपान- योनि । २ अवनति (पउम ८०,४६)। गामि दिन, दिन-रातः 'णिरए णेर इयाणं अहोणिसं वायु, पर्दन (प्रावम)। 'विग्रड वि [विकट] वि [गामिन् दुर्गति में जानेवाला (सम पञ्चमाणाणं (सूत्र १, ५, १७ श्रा ५०), 'अंतो भित्त्यादिरहित स्थान, खुला स्थान; 'तंसि १५३; श्रा ३३)। 'तरण न ['तरण] कलह, अहोनिसिस्स उ (विसे ८७३)। 'रत्त पुं भगवं अपडिन्ने प्रहेवियडे अहियासए दविए झगड़ा (निचू १०)। मुह वि [°मुख] [ रात्र] १ दिन और रात्रि परिमित काल, (प्राचा)। सत्तमा स्त्री [°सप्तमी सातवीं अधोमुख, अवनत मुख, लजित (सुर २, १५८ पाठ प्रहर (ठा २, ४); 'तिरिश अहोरत्ता या अन्तिम नरकभूमि (सम ४१; गाया १, ३, १३५, सुपा २४२)। लोइय वि पुण न खामिया कयंतेणं' (पउम ४३, ३१) । १६; १६)। देखो अहो = अधस् । [लौकिक] पाताल लोक से संबन्ध रखने- २ चार-प्रहर का समय (जो २)। राइया अहे देखो अह = अथ (भग १, ६)। वाला (सम १४२)। "हि वि [ अवधि स्त्री [ रात्रिकी] ध्यानप्रधान अनुष्ठान-विशेष अहेउ पुं[अहेतु] १ सत्य हेतु का विरोधी, १ नीचे दर्जा का अवधिज्ञान वाला (राय)।। (पंचा १८; प्राव ४ सम २१)। राइंदिय हेत्वाभास (ठा ५, १)। २ वि. कारणरहित, २ पुंस्त्री. नीचे दर्जा का अवधिज्ञान, प्रव- न [रात्रिन्दिव] दिनरात (भग; प्रौप)। नित्य (सूत्र १, १, १)। वाय पुं [वाद] | विज्ञान का एक भेद (ठा २, २)। अहोरण न [दे] उत्तरीय वस्त्र, चारर (दे १, आगमवाद, जिसमें तर्क-हेतु को छोड़कर अहो प्र[अहनि] दिवस में, 'अहो य राम्रो ! २५; गा ७७१)।
इम सिरिपाइअसद्दमहण्णवे अयाराइसहसंकलणो
णाम पढ़मो तरंगो समत्तो।
श्रा
आ [आ] १ प्राकृत वर्णमाला का द्वितीय 'पाणीलकक्करुदंतुरं वरणं (गउड); 'मायब' | स्वर-वर्ण (प्रामा)। इन अर्थों का सूचक (से ६, ३१, विसे १२३५)। ५ समन्तात्, अव्यय-२ अ. मर्यादा, सीमाः 'आस- चारों प्रोर'अणुकंडलमा विवइएणसरसमुद्दे (गउड; विसे ८७४) । ३ अभिविधि, कवरीविलंघियंसम्मि' (गउडः विसे ८७५)। व्याप्ति; 'मामूलसिर फलिहथभाओं (कुमाः ६ अधिकता, विशेषताः 'आदीण' (सूम विसे ८७४)। ४ थोड़ापन, अल्पताः | १,५) । ७ स्मरण, याद (षड् )। ८ विस्मय, |
आश्चर्य (ठा ५)। ९-१० क्रियाशब्द के योग में अर्थविस्तृति और विपर्यय; 'पारुहइ', 'पागच्छत (षड् ; कुमा)। ११ वाक्य की शोभा के लिए भी इसका प्रयोग होता है (णाया १,२)। १२ पादपूर्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (षड् २, १,७६) ।
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