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पाइअसहमहण्णवो
अवर अवलंब
अवर स अपर] १ पिछला काल या देश । वह, अपराधीः 'सगडे दारए ममं अंतेउरंसि अकरिल्ल वि [उपरि] उत्तरीय वस्त्र, चादर (हे (महा) । २ पिछले काल या देश में रहा हुआ, अवरद्ध' (विपा १, ४. स २८)। ३ विना- २, १६६; कुमाः गउड पान)। पाश्चात्य (सम १३; महा)। ३ पश्चिम दिशा शित, नष्ट किया हुमा (णापा १, १)। | अवरिल वि[अपरीय] पाश्चात्य, पश्चिम दिशा में स्थित, 'अवरद्दारेणं' (स ६४६)। कंका अवरद्धिन वि [अपराधिक] १ अपराधी, संबन्धी; 'तो णं तुब्भे प्रवरिल्लं वरणसंडं गच्छेस्री [°कङ्का] १ घातकी-खंड के भरतक्षेत्र की । दोषी। २ पु. लूता-स्फोट । ३ सर्पादि-दंश । ज्जाह' (णाया १, ६)। एक राजधानी। २ इस नाम के 'जातधर्म- (पिंड १४)।
अवरिहड्ढपुसण न [दे] १ प्रकीति, अजस। कथा' सूत्र का एक अध्ययन (णाया १, १६) । अवरद्धिग । पुंस्त्री [अपराधिक] १ सर्प
२ असत्य, भूठ । ३ दान (दे १, ६०)। यह पुं ह] १ दिन का अन्तिम प्रहर (ठा अवरद्धिय ) दंश। २ फुनसो, छोटा फोड़ा
अवरंड सक [दे] प्रालिङ्गन करना। अवरुडइ ४, २) । २ दिन का उत्तरी भाग (प्राच१७ (अघि ३४१; पिड) ।
(दे १.११, सुर ३, १८२; भवि) । कम. अवगा २६ प्रासू ५४)। दाहिण पं अवरा स्त्री अपरा] विदेहवर्ष की एक नगरी
इंडिजइ (दे १, ११)। संकृ. अवरुंडिऊरण [दक्षम] १ नैऋत्य कोण । २ वि. नैऋत्य (ठा २, ३)।
(दे १,११; स ४२१)। अगा में स्थित (पंचा २)। दाहिणा स्त्री अवरा स्त्री [अपरा] पश्चिम दिशा (पव १०६)।
अवरंडण । न [दे] गालिङ्गन (भवि; पात्रः क्षिा ] पश्चिम और दक्षिण दिशा के
अवराइया देखो अपराइया (पउम २५, १; अवरंडिअ । दे १,१:)। "च की दिशा, नैऋत कोण (वव ७)। फाणु जंठा २, ३)।
अवरुत्तर पुं[अपरोत्तर] १ वायव्य कोण । .: [पार्ण] एड़ी, अड्डी का पिछला भाग
अवराइस देखो अण्णाइस (षड् ; हे ४, २ वि. वायव्य कोण में स्थित (भग)। 1) राय [ रात्र] देखो अवरत्त:
अवरुत्तरा स्त्री [अपरोत्तरा] वायव्य दिशा, या पात्र (प्राचा)। विदेह पुं[विदेह] अवराजिय देखो अपराइय (इक)।
पश्चिम और उत्तर के बीच की दिशा (वव पहा विदेह नामक वर्ष का पश्चिम भाग (ठा २,
अवराजिया देखो अपराइया (इक) । : पडि)। विदेहकूड न [विदेहकूट]
अवराह पु [अपराध] १ अपराध, गुनाह अवरुद्ध वि [अवरुद्ध] घिरा हुआ (विसे विशेष का शिखर-विशेष (जं ४) । देखो
(आव १)। २ अनिष्ट, बुराई; 'प्रवराहेसु गुरणेसु २६७५) ।
य निमित्तमेत्तं परो होइ' (प्रासू १२२)। अवरुप्पर देखो अवरोप्पर (कुमा; रंभा)। अवर स [अवर] ऊपर देखो (महाः णाया १,
अवराह पुंदे] कटी, कमर (दे १, २८)। अवरुह प्रक[अव + रुह ] नीचे उतरना। 2: वव ७ पंचा २)।
अवरायि न [अपराधित] १ अपराध, । अवरुहेहि ( मै १४)। यमुट वि [अपराङ मुख १ संमुख ।
गुनाह; 'जंपइ जणो महल्लं कस्सवि प्रवराहियं अवरूव देखो अपुव्य (प्राकृ ८५)। तत्पर (पि २६६)।
जायं' (पउम १४, २५, स ३२०)। २ अप- अवरोप्पर) वि [परस्पर आपस में (हे ४, अवरच्छ देखो अपरच्छ (पएह १, ३)। । कार, अनिष्ट, अहित;
अवरोवर । ४०६; गउड; सुपा २२; सुर ३, अवरज [द] १ गत दिन । २ आगामी
'सिरि चडिआ खंति फलई, पुण डालई ७६; षड्)। दिन । ३ प्रभात, सुबह (दे १,५६)।
मोर्डति । अबरोह पुं [अवरोध] १ अन्तःपुर, जनान
तोवि महदुम सउणाह, अवराहिउ न खाना (सुपा ६३) । २ अन्तःपुर में रहनेवाली अवरज्झ अक [अप + राध] १ अपराध
करंति' (हे ४, ४५)।। स्त्री (विपा १,४)। ३ नगर को सैन्य से करना, गुनाह करना । २ नष्ट होना। अव.
अवराहिल्ल वि [अपराधिन] अपराधी (प्राकृ घेरना (निचू ८)। ४ संक्षेप (विसे ३५५५) । रज्झइ (महाः उव)। वकृ. अवरभंत
५ प्रतिबन्ध, 'कहं सव्वत्थित्तावरोहोति' (विसे (राज)। अवरत्त पुं [अपररात्र, अवररात्र] रात्रि का
१७२३) । जुवइ स्त्री [युवति] अन्तःपुर अवराहुत्त वि [अपराभिमुख] १ पराङ
मुख । २ पश्चिम दिशा की तरफ मुंह किया की स्त्री (पि ३८७)। पिछला भाग (भग; पाया १, १)। हुआ (प्राव ४)।
अवरोह पु[अवरोह ] उगनेवाला (तरण अवरत्त वि [अपरक्त १ विरक्त, उदास (उप अवरि
आदि) (गउड)। पृ ३०८) । २ नाराज, नाखुश (मुदा २६७)। अब अ[उपरि] ऊपर (दे १,२६; प्राप्र)।
अवरोह पुं[दे] कटि, कमर (दे १, २८)। अवरत्तअ) पुं[दे] पश्चाताप, अनुताप (दे अवरिक्क वि [दे] अवसररहित, अनवसर | अवलंब सक [अव + लम्ब्] १ सहारा अवरत्तेअ१, ४५; पाप)। (दे १, २०)।
लेना, आश्रय लेना। २ लटकना । अवलंबइ अवरदक्खिणा देखो अवर-दाहिणा (पव अवरिगलिअ वि[अपरिगलित] पूर्ण, भरपूर (कस) । अवलंबेइ (महा)। वकृ. अवलंब(से ११, ८८)।
माण (सम्म ५८)। कवकृ. अवलंबिजंत अवरद्ध न [अपराद्ध] १ अपराध, गुनाह (सुर अवरिज वि [दे] अद्वितीय, असाधारण (दे | (पि ३६७) । संकृ. अवलंबिऊण, अवलं२, १२१)। २ वि. जिसने अपराध किया हो १,३६; षड्)।
बिय (प्राव ५; आचा २, १, ६)। हेकृ.
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