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अपरिग्गहा- अपेहय
ममता-रहित, निर्ममः 'अपरिग्गहा अणारंभा भिक्खू तारणं परिव्वए' ( सूत्र १, १, ४) । अपरिग्गहा स्त्री [अपरिग्रहा ] वेश्या (वव २) ।
अपरिगहि स्त्री [अपरिगृहीता] १ वेश्या, कन्या वगैरह अविवाहिता स्त्री (पडि ) । २ पति- होना स्त्री, विधवा (धर्मं २ ) । ३ घरदासी । ४ पनहारी । ५ देव-पुत्रिका, देवता को भेंट की हुई कन्या ( श्राचू ५) । अपरिच्छण्ण वि [अपरिच्छन्न] १ नहीं 1 अपरिच्छन्न । ढका हुआ, अनावृत (वव ३) । २ परिवार रहित (वव १) । अपरिणयवि [ अपरिणत] १ रूपान्तर को अप्राप्त (ठा २, १) । २ जैन साधु की भिक्षा का एक दोष । (प्राचा) ।
अपरित वि [अपरीत ] अपरिमित, अनन्त ( पण १८ ) ।
अपरिसेस वि [अपरिशेष ] सब, सकल, निःशेष (परह १, २, पउम ३, १४० ) । अपरिहारियवि [अपरिहारिक ] १ दोषों का परिहार नहीं करनेवाला । ( श्राचा) । २ पुं. जैनेतर दर्शन का अनुयायी गृहस्थ ( निचू २) ।
अपवग्ग पुं [अपवर्ग] मोक्ष, मुक्ति (सुर १० सत्त ११) । अपविद्धवि [अपविद्ध] १ प्रेरित (से ७, ११) । २ न. गुरु-वन्दन का एक दोष, गुरु को वन्दन करके तुरन्त ही भाग जाना (शुभा २३) ।
अप वि [अप्रभ] निस्तेज (दे १, १६४) । अपहृत्य देखो अवत्थ (भवि ) । अपहार वि[ अपहारिन्] अपहरण करनेवाला ( स २१७) । अपहवि [अपहृत ] छीना हुआ ( पउम ७६, ५)।
अपहुवि [अप्रभु] १ असमर्थ । २ नाथरहित, अनाथ ( पउम १०१, ३५) । पाव [पत्रित] पात्र रहित, भाजनवजित; 'नो कप्पइ निग्गंथीए अपाइयाए होत्तए ' ( कस) । पाउड वि [ अपावृत] नहीं ढका हुआ, वस्त्र-रहित, नम (ठा ५, १) ।
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पाइअसद्दमद्दण्णवो
अपादाण न [ अपादान ] कारक- विशेष, जिसमें पञ्चमी विभक्ति लगती है (विसे २११७) ।
अपाण न [ अपान] १ पान का अभाव । (उप ८४५) । २ पानी जैसा ठंढा पेय वस्तुविशेष | (भग १५ ) । ३ पुंन. अपान वायु । ४ गुदा (सुपा ६२० ) । ५ वि. जल- वर्जित, निर्जल (उपवास); 'छट्ठणं भतेरणं श्रपाणएणं' (जं २) । अपायावगम पुं [ अपायापगम ] जिनदेव का एक अतिशय (संबोध २ ) ।
अपार वि [अपार ] पार-रहित, अनन्त (सुपा ४५०)।
अपारमग्ग पुं [] विश्राम, विश्रान्ति (दे १, ४३)।
[प] १ पाप - रहित (सूत्र १, १, ३) । २ न. पुण्य (उव) । पावा [पापा ] नगरी-विशेष, जहां भगवान् महावीर का निर्वाण हुआ था, यह आजकल 'पावापुरी' नाम से प्रसिद्ध है और बिहार से आठ माईल पर है (राज) । अपिट्ट वि [दे] पुनरुक्त, फिरसे कहा हु ( पड् ) ।
[अ] निट ( जीव १) । अपिह अ [ अपृथक् ] अ-भिन्न (कुमा) । अपुणबंधग ) वि [ अपुनर्बन्धक] फिर से अपुणबंधय उत्कृष्ट कर्मबन्ध नहीं करने वाला, तीव्र भाव से पाप को नहीं करने वाला (पंचा ३ उप २५३३ ६५१) । अणभव पुं [अपुनर्भव] १ फिर से नहीं होना । २ वि. जिससे फिर जन्म न हो वह, मुक्ति-प्रद ( परह २, ४) । अपुणभाव वि [अपुनर्भाव] फिर से नहीं होनेवाला (पंच १) । अणभव देखो अपुणब्भव (कुमा) । अपुणरागम पुं [अपुनरागम] १ मुक्त आत्मा । २ मुक्ति, मोक्ष ( दसचू १) । [ अपुनरावर्त्तक] १ अपुग रावत्तग ) अनुणवत्तय । फिर नहीं घूमने वाला, मुक्त श्रात्मा । २ मोक्ष, मुक्ति ( पि ३४३ श्रपः भग ११) ।
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अपुनरावर्तिन् ] मुक्त
[अपुनरावृत्ति ] मोक्ष,
अपुणरावत्ति पुं श्रात्मा ( पि ३४३) ।
वित्त मुक्ति (डि ) ।
अपुणरुत वि [अपुनरुक्त] फिर से श्रकथित, पुनरुक्ति-दोष से रहित; 'अपुरणरुतेहि महाविह संथुइ' (राय) । अपुणागम देखो अपुगरागम ( पि ३४३) । अपुणागमण [अपुनरागमन] १ फिर से नहीं माना। २ फिर से प्रनुत्पति; 'अपुरणागमरणाय वतं तिमिरं उम्मूलियं रविणा (गउड) |
अपुग न [अपुण्य ] १ पाप । २ वि. पुण्यरहित, कम नसीब, हतभाग्य ( विपा १, ७) । अपुण्ण वि [अपूर्ण ] अधूरा, अपरिपूर्ण (विपा १, ७) ।
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gora [] आक्रान्त ( पड् ) । अपुत} वि [अ] अपुत्तिय ) ( सुपा ४१२ ३१४) । २ स्वजनरहित, निर्मम निःस्पृह (प्राचा) । अन्न देखो अपुग (गाया १, १३) । अमन [ अ ] नपुंसक ( ओघ २२३) । अपुल देखो अप्पुल्ल (चंड ) । अपुव्यवि [अपूर्व ] १ नूतन, नवीन । २ अद्भुत, आश्चर्यकारक । ३ असाधारण, अद्वितीय ( ४, २७० उप ६ टी) । करण
[ग] १ आत्मा का एक अभूतपूर्व शुभ परिणाम ( श्राचा) । २ आठ गुणस्थानक (पव २२४, कम्म २, ९) । अ) पुं [अपूप] एक भक्ष्य पदार्थ, पूम्रा, अपूर्व पूड़ी (पः परण ३६ दे १, १३४ ६, ८१) ।
अपेक्ख सक [ अप + इक्षू_ ] अपेक्षा करना, राह देखना । हे अपेक्खिदुं (शौ )
( नाट) ।
अपेच्छवि [अप्रेक्ष्य ] १ देखने के अशक्य | २ देखने के अयोग्य ( उव) । अपेय वि [ अपेय ] पीने के प्रयोग्य, मद्य आदि (कुमा) ।
अपेय व [अपेत ] गया हुआ, नऊः 'अपेय'चक्खु' (बृह १) ।
अपेय वि [अपेक्षक ] अपेक्षा करने वाला ( आव ४) ।
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