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पाइअसद्दमहण्णवो
अप्पाअप्पि-अफल
अप्पाअप्पि स्त्री [दे] उत्कण्ठा, औत्सुक्य (अप्पिडि विढय [अल्पर्द्धिक] अल्ल संपत्ति अप्फाल सक [आ + स्फालय] १ आस्फो(पिंग)। वाला (भगः पउम २, ७४) ।
टन करना, हाथ से आघात करना। २ ताडना, अप्पाउड वि [अप्रावृत अनाच्छादित, नग्न अप्पिण सक [अर्पय ] अर्पण करना, भेंट पीटना । ३ ताल ठोकना । अप्फालेइ (महा)। (सूम २, २)।
करना, देना; 'अहीरोबि बारगेण अप्पिण' कवकृ. अप्फालिज्जत (राय)। संकृ. अप्फाअप्पाउय वि [अल्पायुष्क] थोड़ा आयु-| (आक) । अप्पिणामि (पि ५५७)। अप्पि- लिऊण (काप्र १८६ महा)। वाला (ठा ३, ३; पउम १४, ३०)। एंति (विसे ७ टी)।
| अप्फालण न [आस्फालन] १ ताल ठोकना। अप्पाउरण वि [अप्रावरण] १ नग्न । २ न. | अप्पिणग न [अर्पण] दान, भेंट (उप २ ताड़न, आघात (गा ५४८० से ५, २२ वस्त्र का प्रभाव । ३ वस्त्र नहीं पहनने का | १७४)।
सुपा ८७)। नियम (पंचा ५, पव ४)।
अप्पिणिच्चिय वि [आत्मीय] स्वकीय, अप्फालिय वि [आस्फालित] १ हाथ से अप्पाण देखो अप्प = प्रात्मन् (पएह १, २, | निजी (भग)।
ताडित, पाहत (पि ३११)। २ वृद्धि प्राप्त, ठा २, २प्रातः हे ३, ५६) । रक्खि वि अप्पिय वि [अर्पित] १ दिया हुआ, भेंट | उन्नत (राज)। [रक्षिन् ] आत्मा की रक्षा करनेवाला किया हुआ (विपा १, २, हे १, ६३)। | अप्फुद सक [आ + कम] १ आक्रमण (उत्त ४)।
२ विवक्षित, प्रतिपादन करने को इष्टः 'जह करना। २ जाना, 'संझाराप्रो ब्व रगह अप्पाबहु न [अल्पबहुत्व] न्यूनाधिकता, दवियमप्पियं तं तहेव अस्थित्ति पजवनयस्स | अप्फुदइ मलिअरविअरं कुसुमरो' (से ६, अप्पाबहुय । कम-वेशीपन (नव ३२; ठा
(सम्म ४२)। ३ पुं. पर्यायाथिक नय, प्रप्पि- ५७)। ४, २)।
यमयं विसेसो सामनमरणप्पियनयस्स' (विसे)। अप्फुडिय देखो अफुडिय (जं २; दस ६)। अप्पावय वि [अप्रावृत] १ वस्त्र-रहित,
अप्पिय वि [अप्रिय] १ अनिष्ट, अप्रीतिकर अप्फुण्ण वि [दे. आक्रान्त] पाक्रान्त, नग्न (पएह २, १)। २ खुला हुआ, बन्द
(भग १, ५; विपा १, १)। २ न. मन का | दबाया हुअा (हे ४, २५८)। नरें किया हुआ (सूत्र १, ५, १)।
दुःख । ३ चित्त को शंका, 'अदु णाईणं व | अप्फुण्ण वि [अपूर्ण] अपूर्ण, अधूरा अप्पाविय वि [अर्पित दिया हुआ (सुपा सुहीरणं वा अप्पियं दट्छु एगता होंति' (सूब
(गउड)। १, ४, १, १४)।
अप्फुण्ण | वि [दे. आपूर्ण] पूर्ण, भरा अप्पाह सक [सं + दिश] संदेश देना,
अप्पीइ स्त्री [अप्रीति अप्रेम, अरुचि (सुपा अप्फुन्न । हुआ (दे १, २०; सुर १०, खबर पहुँचाना । अप्पाहइ (षड् ; हे ४, २६४)।
१७०; पा); 'महया पुत्तसोएणं अप्फुन्ना १८०)। अप्पाहेइ (गा ६३२)। संकृ. अप्पीकय वि [आत्मीकृत आत्मा से संबद्ध
समागी' (निर १, १)। अप्पाहटु, अप्पाहिवि (पि ५७७; (विसे)।
अप्फुल्लय देखो अप्पुल्ल (गउड)। भवि)।
अप्पुट्ठ वि [अस्पृष्ट] नहीं छूपा हुआ, असं- अप्फोआ स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (पएरण अप्पाह सक [आ + भाप् ] संभाषण
युक्तः 'जं अप्पुट्ठा भावा ओहिनारणस्स हुंति | करना । अप्पाहइ (प्राकृ ७०)। पञ्चक्खा (सम्म ८१)।
अप्फोड सक [आ + स्फोटय् ] १ आस्फाअप्पाह सक [अधि + आपय् ] पढ़ाना,
अप्पुट्ठ वि [अपृष्ट] नहीं पूछा हुआ (सुपा | लन करना, हाथ से ताल ठोकना । २ ताड़न सीखाना। कर्म. अप्पाहिजइ (से १०,७४)।
करना। वकृ. अप्फोडत (णाया १, ८; वकृ. अप्पाहत (से १०,७५) । हेकृ. अप्पा
अप्पुण्ण वि [दे. आपूर्ण] पूर्ण ( षड् )।- सुर १३, १८२)। हेउं (पि २८६)। अपाहणी स्त्री [दे] संदेश, समाचार (पिंड
अप्पुल्ल वि [आत्मीय प्रात्मा में उत्पन्न | अप्फोडण न [आस्फोटन] प्रास्फालन (हे २, १६३; षड् ; कुमा)।
(गउड)। ४३०)।
अप्फोडिय । वि [आस्फोटित] १ आस्फाअप्पाहण्ण न [अप्राधान्य] मुख्यता का जीवियमवि चयइ मह कज्जे' (सुपा ३११)।
अप्फोलिय लित, आहत । २ न. प्रास्फाप्रभाव, गौणता (पंचा १; भास ११)।
लन, आघात (पएह १, ३, कप्प) । अपाहिय वि [संदिष्ट] संदेश दिया हया | अप्पेयव्य देखो अप्प % अपंय ।
अप्फोया स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (राय (भषि)। अप्पोलि स्त्री [अप्रज्वलिता] कची फल
८० टी)। अप्पाहिय वि [अध्यापित] १ पाठित, फुलहरी (श्रा २१)।
अप्फोव वि [दे] वृक्षादि से व्याप्त, गहन, शिक्षित (से ११, ३८१४, ६१)। २ न. | अप्पोल्ल वि [दे] पोल-रहित, नकर (बृह ३)।
निबिड (उत्त १८)। सीख, उपदेश; 'अप्पाहियसरणं' (उप ५६२, अप्फडिअ वि [आस्फालित] भास्फालित, अफल वि [अफल] निष्फल, निरर्थक (द्र
आहत (विसे २६८२ टो)।
टी)।
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