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अब्भुक्खिय-अभय
पाइअसद्दमहण्णवो अब्भुक्खिय वि [अभ्युक्षित] सिक्त (स अब्भुत्त अक [प्र+दीप] १ प्रकाशित | अब्भुवगय दि [अभ्युपगत] १ स्वीकृत (सुर ३४०)।
होना । २ उत्तेजित होना । अब्भुत्तइ (हे ४, । ६,५८) । २ समीप में गया हुआ (प्राचा)। अब्भुगम पुं[अभ्युद्गम] उदय, उन्नति १५२) । अब्भुत्तए (कुमा)। प्रयो. अब्भुत्तेति अब्भुववण्ण वि [अभ्युपपन्न] अनुग्रह-प्राप्त, (सूत्र १,१४)। (से ५,५९)।
अनुगृहीत (नाटः पि १६३; २७६) । अब्भुग्गय वि [अभ्युद्गत] १ उन्नत । २ अन्भुत्तिअ वि [प्रदीप्त] १ प्रकाशित । २ अब्भुववत्ति स्त्री [अभ्युपपत्ति] अनुग्रह, उत्पन्न (गाया १,१)। ३ ऊंचा किया हुआ, उत्तेजित (से १५, ३८)।
मेहरबानी (अभि १०४)। उठाया हुआ (प्रौप)। ४ चारों तरफ फैला अब्भुत्थ वि [अभ्युत्थ] उत्पन्न, 'पुव्वभवब्भु- अब्भुवे सक [अभ्युप + इ] स्वीकार करना। हुआ (चंद १८)। स्थसिरोहाओ' (महा)।
अब्भुवेजामि (गाया ,१६ टी, पत्र २.५) । अब्भुग्गय वि [अभ्रोद्गत] ऊंचा, उन्नत अब्भुन्थ । देखो अब्भुट्ठा । वकृ. अब्भुत्थंत | अब्भो देखो अव्यो ( षड् )। (भग १२,५)।
अब्भुत्था (से १२, १८)। संकृ. अब्भु- अब्भोक्खिय वि [अभ्युक्षित] सिक्त, सींचा अब्भुच्चय पुं [अभ्युच्चय] समुच्चय (भास | त्थित्ता (काल)।
हुआ (सुर ६, १६१)। अब्भुदय पुं [अभ्युदय] १ उन्नति, उदय
अब्भोज वि [अभोज्य] भोजन के अयोग्य अब्भुजय वि [अभ्युद्यत] १ उद्यत, उद्यम- (प्रयौ २६); 'अभुयभूयब्भुदयं लधुरणं नरभवं
(पिंड १६०)। युक्त (गाया १, ५)। २ तैयार (णाया १, सुदीहद्धं' (उप ७६८ टो)। १; सुपा २२२)। ३ पुं. एकाकी विहार
अब्भोय (अप) देखो आभोग (भवि) । अब्भुद्धर सक [अभ्युद् +धृ] उद्धार करना। (धम्म १२ टी)। ४ जिनकल्पिक मुनि (पंचव अब्भुद्धरामि (भवि) ।
अभोवगमिय वि [आभ्युपगमिक] अन्भुद्धरण न [अभ्युद्धरण] १ उद्धार (स
| स्वेच्छा से स्वीकृत । स्त्री [1] स्वेच्छा से अब्भुट्ठ उभ [अभ्युत्+स्था] १ आदर करने ५४३) । २ वि. उद्धार-कारक (हे ४,३६४)।
स्वीकृत तपश्चर्यादि की वेदना (ठा ४, ३) । के लिए खड़ा होना। २ प्रयत्न करना । ३ अब्भुन्नय देखो अब्भुण्णय (णाया १, १)। अव्हिड देखो अभिड । अव्हिडइ ( षड् )। तैयारी करना । अन्भुठेइ (महा)। वकृ.
अब्भुब्भड वि [अभ्युद्भट] प्रत्युद्भट, विशेष अब्हुत्त देखो अब्भुत्त अव्हत्तइ (षड् )। अब्भुद्रमाण (स ४१६) । संकृ. अब्भुट्टित्ता उद्धत (भवि)।
अभग्ग वि [अभग्न] १ अखण्डित, अत्रुटित (भग)। हेकृ. अब्भुट्टित्तए (ठा २, १)।
अब्भुय न [अद्भुत] १ आश्चर्य, विस्मय (उप | (पडि)। २ इस नाम का एक चोर (विपा कृ. अब्भुट्टेयव्य (ठा )।
७६८ टी)। २ वि. आश्चर्य-कारक (रायः | १,१) । अब्भुट्टण न [अभ्युत्थान] आदर के लिए
सुपा; ३५)। ३ पुं. साहित्य शास्त्र प्रसिद्ध अभत्त वि[अभक्त] १ भक्ति नहीं करनेवाला खड़ा होना (से १०,११)। रसों में से एक;
(कुमा)। २ न. भोजन का प्रभाव (वव ७) । अब्भुट्ठा देखो अब्भुट्ठ।
'विम्हयकरो अपुवो, अभूयपुव्वो य जो g jार्थ] उपवास (प्राचू, पडि; सुपा अब्भुट्ठाण देखो अब्भुट्ठण (सम ५१: सुपा
रसो होइ। ३१७)। 'ट्रिय वि [र्थिक] उपोषित, ३७६)। हरिसविसाउप्पत्ती, लक्खरगो अब्भुप्रो नाम'
जिसने उपवास किया हो वह (पंचव २)। अन्भुठ्ठिय वि [अभ्युत्थित] १ सम्मान
(अणु)। करने के लिए जो खड़ा हुआ हो (गाया १,
अभय न [अभय] १ भय का अभाव, धैर्य अब्भुवगच्छ सक [अभ्युप + गम् ] १ ८)। २ उद्यत, तैयारः 'अन्भुट्ठिएसु मेहेसु'
(राय)। २ जीवित, मरण का प्रभाव (सूत्र स्वीकार करना। २ पास जाना । प्रयो., संकृ. (गाया १,१: पडि)।
१,६)। ३ वि. भय-रहित, निर्भीक (प्राचा)। अब्भुवगच्छाविय (पि १६३)। अब्भुढेत्तु [अभ्युत्थातृ ] अभ्युत्थान करने
४ पु. राजा थेगिक का एक विख्यात पुत्र और अब्भवगच्छाविअ वि [अभ्युपगमित] | मन्त्री, जिसने भगवान महावीर के पास दीक्षा वाला (ठा ५, १)।
स्वीकार कराया हुआ, 'ताहे तेहि कुमारोह | ली थी (अनु १; गाया १, १)। कुमार पुं अब्भुण्णय वि [अभ्युन्नत] १ उन्नत, ऊंचा संबो मजं पाएत्ता अब्भुवगच्छाविमो विगयमो [°कुमार] देखो अनन्तरोक्त अर्थ (पडि)। (पएह १, ४)। चितेइ' (प्राक पृ ३०)।
दय वि [°दय य-विनाशक, जीवित-दाता अब्भुण्णयंत वकृ. [अभ्युन्नयत् ] १ ऊंचा अब्भुवगम पुं [अभ्युपगम] १ स्वीकार, | (पडि)। दाण न [दान] जीवित-दान करता हुआ। २ उत्तेजित करता हुआ, | अङ्गीकार (सम १४५; स १७०)। २ तर्क- (पएह २, ४)। "देव पुं[देव] कईएक 'तीएवि जलंति दीववत्तिमब्भुएणतीए' (गा शास्त्र-प्रसिद्ध सिद्धान्त-विशेष (बृह १; सूप विख्यात जैनाचार्य और ग्रन्थकारों का नाम २६४)। १,१२)।
(मुणि १०८७४गु १४; ती ४०; सार्ध अब्भुत्त अक [स्ना] स्नान करना । प्रभुत्तइ अब्भुवगमणा स्त्री [अभ्युपगमना] स्वीकार, ७३)। पदाण न [प्रदान] जीवित का (हे ५, १४) । वकृ. अब्भुत्तंत (कुमा)। । अङ्गीकार (उप ८०५)।
दान (सूत्र १,६)। वत्त न [°वत्त्व निर्भयता,
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