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पाइअसहमहण्णवो
अवच्चीय-अवणम अवञ्चीय वि [अपत्यीय संतानीय, संतान- अवज्झाय वि [3.पध्यात] १ दुर्ध्यान का 'घाएण मो, सद्देण मई, चोजेण संबन्धी (ठा ६)। विषय। २ अवज्ञात, तिरस्कृत (णाया १,१४)।
वाहवहुयावि। अवच्छण्ण न [दे] क्रोध से कहा जाता अवज्झाय (अप) देखो उवज्माय (दे १,३७)। अ
अवठंभिऊण धणुहं वाहेणवि मुकिया पाणा' मार्मिक वचन (दे १, ३६)। अवट्ट सक [अप + वृत् ] घुमाना, फिरानाः
(वज्जा ४६)। अवच्छेय पु[अवच्छेद] विभाग, अंश (ठा 'प्रवट्ट प्रवट्ट त्ति वाहरते कराणहारे रज्जुपरि
अवठंभ पुं[दे] ताम्बूल, पान (दे १, ३६)। वत्तणजएसुं निजामएसुं अयंडम्मि चेव गिरि
अवड ( [अवट] कूप, कुंआ (गउड)। अवछंद वि [अपच्छन्दस्क] छन्द के लक्षण सिहरनिवडियं पिव विवन्नं जाणवत्त' (स
अवड पुं[दे] १ कूप, कुंआ। २ आराम, से रहित, छन्दोदोष-दुष्ट (पिंग)।
अवडअ बगीचा (दे १,५३)। ३५५)। अवजस पुं[अपयशस्] अपकीति (उप पृ
अवडअ पुं [दे] १ चश्चा, घास-फूस का पुतला, अवट्ट अक [अप+वृत् ] पीछे हटना । अव१८७)।
तृण-पुरुष (दे १, २०)। दृइ (प्राकृ ७२)। अवजाण सक [अप+ज्ञा] १ अपलाप करना,
अवडंक पुं[अवटंङ्क] प्रसिद्धि, ख्यातिः 'जणअवट्टा स्त्री [आवर्ता] राजमार्ग से बाहर को 'बालस्स मंदयं बीयं जं च कडं अवजागई
कयावडंकेण निग्घिरणसम्मो णाम' (महा)। जगह (उप ६६१)। भुजो (सूम १, ४, १, २६)।
अवडकिअवि [दे] कूप आदि में गिरकर अवटुंभ पुं [अवष्टम्भ] अवलम्बन, पाश्रय अवजाय पुं [अपजात] पिता की अपेक्षा
मरा हुआ, जिसने आत्म-हत्या की हो वह (दे (पउम २६, २७, स ३३१)। हीन वैभववाला पुत्र (ठा ४, १)।
१, ४७)। अवटुंभ अजिब्भ पुं [अपजिह व] दूसरी नरक
अवष्टम्भ] दृढ़ता, हिम्मत (धर्मवि अवडाह सक[ उत् + क्रश.] ऊंचे स्वर से
१४०)। पृथिवी का पाठवां नरकेन्द्रक-नरक-स्थान
रुदन करना । प्रवडाहेमि (दे १, ४७) । अवटुंभ देखो अवठंभ । कर्म. अवट्ठभंति (स विशेष (देवेन्द्र ६)।
अवडाहिअन [दे] १ ऊंचे स्वर से रोदन अवजीव वि [अपजीव] जीवरहित, मृत, ७४९)।
(दे १, ४७)। २ वि. उत्कृष्ट ( षड्)। अवटुंभण न [अवष्टम्भन] अवलम्बन, अवडिअ विदे] खिन्न, परिश्रान्त (दे १, अचेतन (गउड)।
अवट्ठहण सहारा (स ७५६ टी; ७४६)। अवजुय वि [अवयुत]. पृथग्भूत, भिन्न
२१)। (वव ७)।
अवटुद्ध वि [अवष्टब्ध] रोका हुआ (द्रव्य | अवडु पुं[अवटु] कृकाटिका, घंटी या घांटी, अवजन [अवद्य] १ पाप (परह २, ४)।
२७)।
कण्ठमरिण (पान)। २ वि. निन्दनीय (सूअ १, १, २)।।
अवद्ध वि [अवष्टब्ध] १ अवलम्बित। २ अवडुअ ' [दे] उदूखल, उलूखल दि १,२६)। अवजस सक [गम्] जाना, गमन करना ।
आक्रान्त, 'प्रवट्ठद्धा महाविसाएणं' (स ५८४)। | अवडुल्लिअ वि [दे] कूप आदि में गिरा हुआ अवजसइ (हे ४, १६२)। वकृ. अवजसंत अवठ्ठव सक [अव + स्तम्भ ] अवलम्बन | (षड्)। (कुमा)।
करना, सहारा लेना। संकृ. अवटुविअ (विक्र अवड्डा स्त्री [दे] कृकाटिका, घट्टी, गर्दन का अवज्ञा स्त्री [अवज्ञा] अनादर (स ६.४)। ६४)।
ऊंचा हिस्सा (भग १५, पत्र ६७६)। अवझ वि [अवध्य] मारने के अयोग्य
अवठाण न [अवस्थान] १ अवस्थिति, अबड्ढ वि अपार्ध १ प्राधा (सुज्ज १०)। (गाया १, १६)। अवस्था । २ व्यवस्था (बृह ५)।
२ प्राधा दिन, 'प्रवड्ढं पचक्खाइ' (पडि; भग अवज्झ सक [दृश ] देखना (संक्षि ३६)। अवट्टिअ वि [अवस्थित] १ अवगाहन करके । १६, ३)। ३ प्राधे से कम (भग ७,१; नव अवज्झस न [दे] १ कटी, कमर । २ वि. स्थित (सूप १,६,११)। २ कर्म-बन्ध विशेष, | ४१)। क्खेत्त न [°क्षेत्र] १ नक्षत्र-विशेष कठिन (दे १, ५६)।
प्रथम समय में जितनी कम-प्रकृतियों का बन्ध (चंद १०)। २ मुहूर्त-विशेष (ठा ६)। अवज्झा स्त्री [अवध्या] १ अयोध्या नगरी
हो द्वितीय प्रादि समयों में भी उतनी ही अवण पुं [दे] १ पानी का प्रवाह । २ घर (इक)। २ विदेह वर्ष की एक नगरी (ठा
प्रकृतियों का जो बन्ध हो वह (पंच ५,१२)। | का फलहक (दे १, ५५)। २, ३)। अवढि वि [अवस्थित] १ स्थिर रहनेवाला
अबण न [अवन] १ गमन । २ अनुभव अवज्माण न [अपध्यान] बुरा चिन्तन, (भग)। २ नित्य, शाश्वत (ठा ३,३) । ३ जो
(णंदिः विसे ८३)। दुर्ध्यान (सुपा ५४६; उप ४६६; सम ५०; बढ़ता-घटता न हो (जीव ३)।
अवणण देखो अवणयण (पिंड ४७३)। विसे ३०१३)। अवट्रिइ स्त्री [अवस्थिति] अवस्थान (ठा ३,
अवद्ध वि [अवनद्ध] १ संबद्ध, जोड़ा हुआ अवज्माण पुंन [अपध्यान दुर्व्यान, 'चउ- | ४ विसे ७५८)।
(सुर २, ७) । २ आच्छादित (भग)। अवमाण विहो अवज्भाणो' (श्रावक अवठंभ सक [अव + स्तम्भ ] अवलम्बन अवणम अक [अव+ नम्] नीचे नमना। २८६ पंचा १, २३; संबोध ४५)। करना । संकू.
वकृ. अवणमंत (राय)।
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