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पाइअसहमहण्णवो
अबंग-अवखेर अवंग [दे] कटाक्ष (दे १, १५)। अवकरिस पुं [अपकर्ष] अपकर्ष, ह्रास, संकृ. अवक्कमइत्ता, अवकम्म (कप्प, वव अवंगु । वि [दे. अपावृत] नहीं ढका | हानि (सम ६०)। अवंगुय हुआ, खुला (प्रौपः परह २, ४)।
अवकलुसिय वि [अपकलुषित] मलिन अवकम सक [अव + क्रम] जाना। प्रवक्कअवंगुण सक [दे] खोलना। अवंगुणेज्जा (गउड)।
मइ (भग)। संकृ. अवक्कमित्ता (भग)। (प्राचा २, २, २, ४)।
अवकस सक [अव + कृष्] त्याग करना । अवक्कमण न [अपक्रमण] १ बाहर निकलना अवंचिअ वि [अवाश्चित] अधोमुख, अवाङ
संकु. अवकसित्ता (चउ १४)। (ठा ५,२) । २ पलायन, भागना; "निग्गमणमुख (वज्जा १०)।
अवकारि वि [अपकारिन्] अहित करने | मवक्कमणं निस्सरणं पलायणं च एगट्ठा' (वव अवचिअ वि [अवश्चित] नहीं ठगा हुआ वाला (पउम ६, ८५)।
१०)। ३ पीछे हटना (रणाया १,१)। (वज्जा १०)।
अवक्कमण न [अपक्रमण] अवतरण, 'उत्तअवंझ वि [अवन्ध्य सफल, अचूक (सुपा
अवकिण्ण वि[अवकीर्ण] परित्यक्त (दे १, ३२५)। पवाय न [प्रवाद] ग्यारहवां १३०)।
रावक्कमणं' (भग ६, ३३)। पूर्व, जैन ग्रन्थांश-विशेष (सम २६)।
अवकिण्णगपुं [अपकीणक] करकण्डू अवक्कय पुं [अवक्रय भाड़ा, भाटि (बृह १)।
अवकिण्णय नामक एक जैन महर्षि का पूर्व अवंतर वि [अवान्तर] भीतरी, बीच का
अवक्कय वि [अपकृत जिसका अहित किया नाम (महा)। (आवम)।
गया हो वह (चंड)। अवंति पुं[अवन्ति] भगवान आदिनाथ का | अवकित्ति स्त्री [अपकौति] अपयश (दे १, |
अवक्करस पुं[दे] दारु, मद्य (दे १, ४६; एक पुत्र (ती १४)।
पान)। अवकिदि स्त्री [अपकृत्ति] अपकार, अहित अवंति। स्त्री [अवन्ति,°न्ती] १ मालव देश।
अवकरिस [अपकर्ष] हानि, अपचय (प्राकृ १२)। अवंती २ मालव देश की राजधानी, जो
अवकास (विसे १७६६ भग १२, ५) । अवकीरण न [अवकरण] छोड़ना, त्याग, आजकल राजपूताना में 'उज्जैन' नाम से प्रसिद्ध
अवकास पुं[अवर्ष ऊपर देखो (भग १२, उत्सर्ग (प्राव ५)। है (महा; सुपा ३६६ आवम)। गंगा स्त्री गङ्गा] आजीविक मत में प्रसिद्ध कालअवकीरिअ वि [दे. अवकीर्ण] विरहि
अवकास पुं [अप्रकाश] अन्धकार, अंधेरा विशेष (भग २४, १)। वड्ढण पुं[°वर्धन] वियुक्त (दे १, ३८)।
(भग १२, ५)। इस नाम का एक राजा (ग्राव)। सुकु- अवकीरियव्व वि [अवकरितव्य त्याज्य, | अवक्कोस पुं [अवक्रोश] मान, अहंकार (सम माल पुं[सुकुमाल] एक श्रेष्ठि-पुत्र, जो छोड़ने लायक (पएह १, ५) ।
७१)। आर्यसुहस्ति प्राचार्य के पास दीक्षा लेकर | अवकृजिय न अवकृजित हाथ को ऊँचा- | अवक्ख सक [दृश्] देखना। प्रवक्खइ देव-लोक के नलिनीगुल्म विमान में उत्पन्न नीचा करना (निचू १७)।
(षड्)। अवक्खए (भवि)। वकृ. अवहुआ है (पडि)। सेण पुं[पेण] एक राजा अवकेसि पुं[अवकेशिन्] फल-बन्ध्य वन- |
क्खंत (कुमा)। (आक)। स्पति (उर २, ८)।
अवक्खंद अबस्कन्द] १ शिबिर, छावनी, अवंदिम वि [अवन्ध] वन्दन करने के अवकोडक देखो अवओडग (पएह १, १)।
सैन्य का पड़ाव । २ नगर का रिपु-सैन्य द्वारा अयोग्य, प्रणाम के अयोग्य (दसचू १)।
वेष्टन, घेरा (हे २, ४. स ४१२) । अवकंख सक [अव + काङ्क्ष] १ चाहना । अवकंत वि [अपक्रान्त] १ पीछे हटा हुआ,
अवक्खर [अवस्कर] पुरोष, विष्ठा (प्राक २ देखना। अवकंखइ (भग)। वकृ. अव- वापस लौटा हुआ (सुपा २६२; उप १३४
| २१)। कंखमाण (गाया १,६)। टी; महा) । २ निकृष्ट, जघन्य (ठा ६)।
अवक्खारण न [अपक्षारण] १ निर्भत्सना, अवकत देखो अवकंत: 'कुमरोवि सत्थराम्रो | अवकंत पुं [अवक्रान्त] प्रथम नरक भूमि का कठोर वचन । २ सहानुभूति का प्रभाव (परह उतॄत्ता सरिणयमवर्कतो' (महा)।
ग्यारहवाँ नरकेन्द्रक--नरक-स्थान विशेष अवकप्प सक [अव + कल्पय् ] कल्पना (देवेन्द्र ५)।
अवक्खेव पुं[अवक्षेप] विघ्न, बाघा (विपा करना, मान लेना । अवकप्पंति (सूम १, ३,
अवकंति स्त्री [अपक्रान्ति] १ अपसरण । २ निर्गमन (णाया १,८)।
अवक्खेवण न [अवक्षेपण] १ बाधा, अन्तअवकय वि [अपकृत] १ जिसका अपकार अवक्कंति स्त्री [अवक्रान्ति गमन गति राय । २ क्रिया-विशेष, नीचे जाना। (प्रावम; किया गया हो वह (उव)। २ अपकार, | (माचा)।
| विसे २४६२)। अहित (सुपा ६४१)।
अवकम अक [अप + क्रम] १ पीछे अवखेर सक [दे] १ खिन्न करना। २ तिरअवकर सक [अप + कृ] अहित करना । हटना । २ बाहर निकलना । अवकमइ (महा, स्कार करना। अवखेरइ (भवि)। वकृ. अवप्रवकरेंति (सूम १, ४, १, २३)।
कप्प)। वकृ. अवक्कममाण (विपा १,६)। खेत (भवि)।
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