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अन [ अयस् ] लोहा, लोह (श्रोष २ ) । "आगर ["आकर] [१] लोहे की खान ( नि ५) । २ लोहे का कारखाना (ठा ८ ) । "कंत, "क्वंत ["कान्त] लोहचुम्बक (आम) । [दे. 'कडिल्ल] कटाह (श्रोघ) । कुंडी स्त्री [ कुण्डी] लोहे का भजन - विशेष (विपा १, ६) । कोट्टय पुं [को] हे काल लोहे का गोला "पोट्ट' अयको व्व वट्ट" ( उवा) । गोलय [गोलक ] लोहे का गोला ( श्रा १९) । 'दव्बी स्त्री [दर्वी] लोहे की कड़छी या कर छुल, जिससे दाल, कढ़ी आदि हिलाया जाता है ( दे २, ७) । पाय न ['पात्र ] लोहे का भाजन । सलागा स्त्री [शलाका ] लोहे की सलाई (उप २११ टी) । अ क [ अ ] १ गमन करना, जाना ।
२ प्राप्त करना । ३ जानना । वकृ. अयमाण (सम २३) ।
अयं तक [ कृप्] [चना २ जोतना, चास करना। रेखा करना । अयंछइ (हे ४, १८७ ) ।
रवि | कर्षिन् ] कर्षणशील, खींचनेL बाला (मा)।
अयं पुं [ अकाण्ड ] १ अनुचित समय (महा) । २ श्रकस्मात् हठात् (पउम ५, १६४३ से ४४ गउड ) । ३ क्रिवि अनधारित, (पाच)।
अयंत व [ आयत् ] आता हुआ, प्रवेश करता हुआ (आम) 1 अतिवि [अयन्त्रित] अनादरणीय (उत्त २०, ४२) ।
अयं पर वि [अजल्पितृ] नहीं बोलनेवाला, मौनी (पि २९६ ५६६) ।
अयंपुल पुं [ अयंपुल ] गोशालक का एक शिष्य (भग ५)। अयंस [आदर्श] व कांच मुद्द ["मुख] इस नाम का एक द्वीप २ द्वीपविशेष का निवासी (इक) । असंधि वि[संधि] उपयुक्त कार्य को यथासमय करनेवाला ( श्राचा) । अयकश्यपुं [अयकरक] एक महाग्रह ( सुज २० ) ।
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पाइअसहमणव
।
अथक } पुं [दे] दानव, असुर (दे १,६)। अगर पुं [अजगर ] अजगर, मोटा साँप ( एह १, १ पउम ६३, ५४ ) । अयड पुं [दे. अवट] कूप, कुंद्रा (दे १,१८ ) अयण न [अतन] सतत होना, निरन्तर होना (विसे ३५७८ ) 1 अयण न [ अन ] १ गमन । २ प्राप्ति, लाभ (विसे ८३ ) । ३ ज्ञान, निर्णय ( विसे ८३ ) । ४ गृह, मन्दिर; 'चंडियायां' ( स ४३५) । ५ वि. प्रापक, प्राप्त करनेवाला ( विसे ६६० ) । ६ पुंन. वर्ष का प्राधा भाग, जिसमें सूर्य दक्षिण से उत्तर में या उत्तर से दक्षिण में जाता है (ठा २, ४); 'एके श्रणे दिश्रहा, बीए रमणी होंति दीहाओ । विरहायणो उव्वो, इत्थ दुवे चे वति' (गा ८४६ ) । १ भक्षरण । २ खुराक, उर ८, ७) । अजान, मूर्ख (सुर ३,
स्थूल, मोठा, महान्
अयण न [ अदन] भोजन ( स १३०
अणुवि [ अज्ञ] १६६ ) । अपणु वि (सण) ।
[अनु]
अतंचि वि [] पुत्र, उपचित (दे १, ४७) ।
अरवि [अजर] वृद्धावस्थारहित 'अयरामरं ठा' (पडि, उब ) ।
अयर पुंग [अंतर ] १ सागर समुद्र ( २८ ) । २ समय का मान विशेष, सागरोपम (संग २१,२५० प ४३)। पि. तरने के अशक्य (बृह १) । ४ असमर्थ, अशक्त (निचू १) । ५ ग्लान, बीमार (बृह १) । अयरामर वि [अजरामर ] जरा धीर मरण से रहित (नव २ ) । २ न. मुक्ति, मोक्ष ( पउम ८, १२७ ) ।
अयल देखो अचल = अचल (पाच गउड
उप पृ १०५; अंत ३; पउम ८५,४; सम ८८ कप्प; सम १९ ) ।
अथला देखो अचला (पउम १२०, अयस देखो अजस (गउडः १५३३ गा १७८ ) ।
१५९ ) । प्रासू २३०
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अय-अर
असं वि [ अयशस्विन् ] प्रजसी, यशोरहित, कीर्ति - शून्य (गउड ) ।
अयसि ? स्त्री [अतसी ] धान्य- विशेष, श्रलसी, अयसी तीसी (भगः ठा ७; गाया १, ५) । अया स्त्री [अजा ] १ बकरी । २ माया, श्रविद्या । ३ प्रकृति, कुदरत (हे ३, ३२ षड् । किवाणिज्ज [कृपाणीय] न्यायविशेषः जैसे बकरी के गले पर अनधारी छुरी पड़ती है उस माफिक अनधारा किसी कार्य का होना ( श्राचा) । पाल पुं ['पाल ] प्राभीर, बकरी चरानेवाला ( स २६० ) । वय
[A] बकरी का बाड़ा (भग १६, ३) । अयागर देखो अय-आगर (ठा ८) । अयाण न [ अज्ञान] ज्ञान का अभाव (सत्त ६२) ।
अयाणवि [अज्ञ, अज्ञान] प्रजान, अज्ञानी, मूर्ख (श्रोध ७४; पउम २२, ५३ गा २७५; ७, ७३) ।
अयाणवि [अज्ञायक ] ऊपर देखो (पान; भवि ) ।
अयात देखो अजाणंत (मोघ ११ ) । अयाणमाण देखो अजाणमाण (नव ३९ ) । टी) अयाणिय देखी अजाणिव (उप ७२६ । अयाणुव देवी अजाणु (गुर ३, १९६० सुपा ५४३) ।
अयार पुं [अकार ] 'अ' अक्षर (विसे ४७८ ) । अयाल [अकाल] योग्य समय चित काल ( पउम २२, ८५) ।
अयालि ? [हे] दुर्दिग, मेवाच्छन्मदिवस (दे १, १३) ।
अवालियर [ अकालिक] शाकश्मिक प्रकाण्डोत्पन्न; 'पडउ पडउ एयस्स हत्थतले मालिया (भा)
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अयि देखो अइ (हे २,२१७)। अयुजरेवइ स्त्री [दे] अचिर-युवति, नवोढा, दुलन (षड् ) 1.
अयोमय देखो अओ-मय ( अंत १६) । अय्यावत्त (शौ) पुं [आर्यावर्त] भारत, हिन्दुस्तान (कुमा) ।
अय्युण (मा) देखो अज्जुण (हे ४, २१२ ) । अर पुं [अ] १ धूरी, पहिये के बीचका काष्ठ । २ अठारहवाँ जिनदेव और सातवाँ
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