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| (ठा ७)।
अभिसेअ-अमर
पाइअसद्दमहण्णवो अभिसेअ) [अभिषेक] १ राजा, प्राचार्य अभिहेअ वि [अभिधेय] वाच्य, पदार्थ अमणुस्स पुं [अमनुष्य] १ मनुष्य-भिन्न देव अभिसेग प्रादिपद पर आरूढ़ करना (संथा. (विसे ८४१)।
आदि (मंदि)। २ नपुंसक (निचू १)। महा)। २ स्नान-महोत्सव, 'जिणाभिसेगे'
अभीइ स्त्री [अभिजित् ] १ नक्षत्र- अमत्त न [अमत्र] भाजन, पात्र (सूअ १,६)। (सुपा ५०)। ३ स्नान (प्रौपः स ३२)। ४ अभीजि विशेष (सम ८, १५)। २ पुं. एक जहां पर अभिषेक किया जाता है वह स्थान राजकुमार (भग १३, ६)। ३ राजा श्रेणिक
अमम वि [अमम] १ ममता-रहित, निःस्पृह
(पएह २, ५, सुपा ५००)। २ पुं. आगामी (भग)। ५ शुक्र-शोणित का संयोग, 'इह खलु | का एक पुत्र, जिसने जैन दीक्षा ली थी (अनु)।
काल में होने वाले एक जिनदेव का नाम अत्तत्ताए तेहिं तेहिं कुलेहिं अभिसेएण अभि- | अभीरु वि [अभीरु] १ निडर, निर्भीक
(सम १५३)। ३ युग्म रूप से होने वाले संभूया' (प्राचा १, ६, १)। ६ वि. प्राचार्य | (माचा)। २ स्त्री. मध्यम ग्राम की एक मूर्च्छना
मनुष्यों की एक जाति (जं ४)। दिन के आदि पद के योग्य (बृह ३)। ७ अभिषिक्त |
२५ वा मुहुर्त का नाम (चंद १०)। 'त्त वि (निचू १५)। अभेज्झा देखो अभिज्मा (पएह १,३)।
[त्व] निःस्पृह, ममता-रहित (पंचव ४) । अभिसेगा स्त्री [अभिषेका] १ साध्वी, संन्या- अभोज वि [अभोज्य] भोजन के अयोग्य सिनी (निचू १५)। २ साध्वियों की मुखिया,
अमय वि [अमय विकार-रहित, (गाया १, १६)। घर न [गृह] भिक्षा प्रवत्तिनी (धर्म ३ निचूह)।
'अमनो य होइ जीवो, कारणविरहा के लिए अयोग्य घर, धोबी आदि नीच जाति अभिसेज्जा स्त्री [अभिशय्या] देखो अभि
जहेव मागासं। | का घर (बृह १)। णिसज्जा (वव १)। २ भिन्न स्थान (विसे
समयं च होअनिच्चं, मिम्मयवडतंतुमाईयं' अम सक [अम्] १ जाना। २ अावाज ३४६१)।
(विसे)। करना। ३ खाना। ४ पीडना। ५ अक. अभिसेवण न [अभिषेवण] पूजा, सेवा, रोगी होना, 'अम गचाईसु' (विसे ३४५३);
अमय न [अमृत] १ अमृत, सुधा (प्रासू भक्ति (पउम १४, ४६)। 'अम रोगे वा' (विसे ३४५४)। अमइ (विसे
६६)। २ क्षीर समुद्र का पानी (राय)। ३ अभिसेवि वि [अभिषेविन सेवा-कर्ता (सूम ३४५३)।
पुं. मोक्ष, मुक्ति (सम्म १६७ प्रामा)। ४ २,६, ४४)। अमग्ग पुं [अमार्ग] १ कुमार्ग, खराब रास्ता
वि. नहीं मरा हुआ, जीवित; 'अमनो हं नय अभिस्संग पुं [अभिष्वङ्ग] प्रासक्ति (विसे (उब)। २ मिथ्यात्व, कषाय प्रादि हेय पदार्थ;
विमुञ्चामि' (पउम ३३,८२)। कर पुं[कर] २९६४)। 'प्रमगं परियारणामि मग्गं उपसंपजामि'
चन्द्र, चन्द्रमा (उप ७६८ टी)। किरण पुं अभिट्टु अ [अभिहत्य] बलात्कार करके,
[किरण] चन्द्र (सुपा ३७७)। "कुंड पुं जबरदस्ती करके (प्राचा; पि ५७७)। (आव ४)। ३ कुमत, कुदर्शन (दंस)।
[कुण्ड] चन्द्र, चाँद (श्रा २७) । °घोस पुं अभिहड वि [अभिहत] १ सामने लाया अमग्घाय पुं [अमाघात] १ द्रव्य का अ
[घोष एक राजा का नाम (संथा) । फल हुआ (पंचा १३) । २ जैन साधुओं की भिक्षा | हरण । २ मारिनिवारण, अभय घोषणा (पंचा
न [फल] अमृतोपम फल (णाया १, ६) । का एक दोष (ठा ३, ४)।
मइय-मय वि[°मय] अमृत-पूर्ण (कुमाः अभिहण सक [अभि + हन] मारना, हिंसा अमञ्च पुं[अमात्य मन्त्री, प्रधान (प्रोप; सुर
सुर ३,१२१, २३३)। मऊह पु[ मयूख करना (पि ४६६)। वकृ. अभिहणमाण ४, १०४)।
चन्द्र (मै ६८) । "वल्लरि, वल्लरी स्त्री (जं ३)। अमञ्च पुं[अमर्त्य] देव, देवता (कुमा)।
["वल्लरि, री अमृतलता, वल्ली-विशेष, अभिहणण न [अभिहनन] अभिघात, हिंसा अमझ वि [अमध्य] १ मध्य रहित, अखण्ड
गुडूची। वल्लि, वल्ली स्त्री [°वल्लि, (भग ८, ७)। (ठा ३, २) । २ परमाणु (भग २०, ६)।
'ल्ली] वल्ली-विशेष, गुडूची (श्रा २०; पव अभिहय वि [अभिहत] मारा हुआ, पाहत | अमण न [अमन] १ ज्ञान, निर्णय (ठा ३,
४)। वास पुं[°वर्ष] सुधा-वृष्टि (थाचा)। (पडि)। ४)। २ अन्त, अवसान (विसे ३४५३)।
देखो अमिय = अमृत। अभिहा स्त्री [अभिधा] नाम, आख्या (सण)। | अमण रवि [अमनस्क] १ अप्रीतिकर,
अमय पुं[दे] १ चन्द्र, चन्द्रमा (दे १,१५)। अभिहाण न [अभिधान] १ नाम, पाख्या अमणक्ख । अभीष्ट (ठा ३,३)। ३ मनरहित
२ असुर, दैत्य (षड्)। (कुमा)। २ वाचक, शब्द (वव ९)। ३ | (पाव ४; सूम २, ४, २)। कथन, उक्ति (विसे)।
अमणाम वि [अमनआप अनिष्ट, अमनोहर अमयघडिअ पुंदे. अमृतघटित] चन्द्रमा, अभिहाण न [अभिधान] १ उच्चारण (सम १४६; विपा १, १)।
चाँद (कुप्र २१)। (सूअनि १३८)। २ कथन, उक्ति (घमंसं | अमणाम वि [अमनोम] ऊपर देखो (भगः अमयणिग्गम पु [दे. अमृतनिर्गम] १ ११११)। ३ कोशग्रन्थ (चेइय ७४)। विपा १,१)।
चन्द्र, चन्द्रमा (दे १,१५)। अभिहिय वि [अभिहित] कथित, उक्त अमणाम वि [अवनाम] पीड़ा-कारक, दुःखो- अमर वि [आमर] दिव्य, देव-सम्बन्धी; 'प्रमरा (प्राचा)। त्पादक (सूम २,१)।
पाउहभेया' (पउम ६१, ४९)।
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