________________
अणुट्ठाइ-अणुदिन्न पाइअसहमहण्णवो
३७ ट्ठियव्य, अणुढे अ (सुपा ५३७; सुर १४, अणुगीअ वि [अनुनीत] जिसका अनुनय अणुताव पुं[अनुताप] पश्चात्ताप (पानः स किया गया हो वह (दे ८, ४८) ।
१८४)। अणुटाइ वि [अनुष्टायिन् अनुष्ठान करने- अणुणेत देखो अणुगी।
अणुतावय वि [अनुतापक] पश्चात्ताप करानेवाला (प्राचा)।
| अणुण्णय बि [अनुन्नत] १ नीचा, नम्र (दस | बाला (सूअ २, ७,८)। अणुटाग न [अनुष्ठान] १ कृति। २ शास्त्रोक्त ५, १)। २ गवरहित, निरभिमानीः एत्थवि अणुतावि देखो अणुतप्पि (अ ७२८ टी)। विधान (आचा)।
भिक्खू अरणगरगए विरणीए' (गून १, १६)। अणुत्त वि [अनुक्त अकथित (पंच ५) । अणुदाण न [अनुत्यान] क्रिया का प्रभाव अणुण्णव सक [ अनु + ज्ञापय ] १ अनु- अणुत्तंत देखो अणुवत्त। (उवा)।
मति देना । २ अाज्ञा देना, हुकुम देना । कर्म, अणुत्तप्प वि [अनुत्त्रप्य] १ परिपूर्ण शरीर । अणुट्ठावग न [अनुष्टापन] अनुष्ठान कराना अणुराणविज इ (उवा) । वकृ. अणुणवेमाण २ पूर्ण शरीरवाला, 'होइ अगुत्तप्पो सो अत्रि(कस)।
(ठा ६)। कृ. अणुण्णवेयव्य (ोघ ३८५ गलइंदियपडिप्पुराणो' (वव २)। अणुट्रिय वि [अनुष्ठित विधि से संपादित, टी)। संकृ. अणुगवित्ता, अणुष्णविय
अणुत्तर वि [अनुत्तर] १ सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम विहित, किया हुआ (षड् : सुर ४, १६६)। (प्रावमः प्राचा २, २, ६)।
(ठा १०)। २ एक सर्वोत्तम देवलोक का अणुट्रिय वि [अनुत्थित] १ बैठा हुअा। २ | अणुण्णवणया । स्त्री [अनुज्ञापना] १ अनु- नाम (अनु)। ३ छोठा, 'अणुत्तरो भाया' पालसी, प्रमादी (प्राचा)। अणुग्णवमा मति, सम्मति । २ आज्ञा,
(पउम ६, ४) । ग्गा स्त्री [प्रया] एक अणुट्रियव्व देखो अणुदा । फरमाइश (सम ४४; अोध ३८४ टी)।
पृथिवी, जहाँ मुक्त जीवों का निवास है (सूप अणुठुभ न [अनुष्टप] एक प्रसिद्ध छंद, अणुण्णव गी स्त्री [अनुज्ञापनी] अनुमति-प्रका
१,६) । गाणि वि-[ज्ञानिन] केवलज्ञानी 'पञ्चक्खरगणणाए अण्ट ठुभारणं हवंति दस शक भाषा. अनुमति लेने का वाक्य (ठा ४,३)।
(सूस १, २, ३)। "विमाण न [विमान सहस्सा (सुपा ६५६)। अणुण्णा स्त्री [अनुज्ञा] १ अनुमति, अनुमोदन
एक सर्वोत्कृष्ट देवलोक (भग ६,६)। विवाइय अगु?अ देखो अणुट्ठा (सूत्र-२,२) । २ प्राज्ञा। कप्प [कल्प]
वि [ोपपातिक ] अनुत्तर देवलोक में अणुण देखो अणुणी । अण्णह (भवि)। जैन साधुनों के लिए वस्त्र-पात्रादि लेने के विषय
उत्पन्न (अनु) । बवाइयदसा स्त्री. ब. अणुणंत देखो अणु गी। में शास्त्रीय विधान (चभा)।
[ पपातिकदशा] नववा जैन अंग-ग्रंथ अणुणय पुं[अनुनय विनय, प्रार्थना (महा: अणुण्णा स्त्री [अनुज्ञा] १ पठन-विषयक
(अनु)। अभि ११९)। गुरु-आज्ञा-विशेष (अणु ३)। २ सूत्र के अर्थ का
अणुत्याण देखो अणुट्ठाण (स ६४६)। अणुणाइ वि [अनुनादिन] प्रतिध्वनि करने | अध्ययन (वव १)। वाला, 'गजियसहस्स अण्णाइणा' (कप्प)।
अणुस्थारय वि [अनुत्साह] हतोत्साह, निराश अणुग्णाय वि [अनुज्ञात] १ जिसको आज्ञा अणुणाय पुं[अनुनाद] प्रतिध्वनि. प्रतिशब्द दी गई हो वह । २ अनुमत, अनुमोदित (ठा
अणुदत्त पुं[अनुदात्त] नीचे से बोला जाने(विसे ३१०४)। अणुणाय वि [अनुज्ञात] अनुमत, अनुमोदित अणुण्ह वि [अनुष्ण] ठंडा, जो गरम नहीं है
वाला स्वर (बृह १)। वह (पि ३१२)।
अणुदय (पंचू)।
[अनुदय] १ उदय का अभाव । अणुणास पुन [अनुनास] अनुनासिक, जो अणुतड पुं[अनुतट] भेद, पदार्थों का एक
२ कर्म-फल के अनुभव का प्रभाव (कम्म २, नाक से बोला जाता है वह अक्षर । २ वि. जाति का पृथक्करण; जैसे संतप्त लोहे को
१३, १४, १५)। सानुस्वार, अनुस्वार-युक्त (ठा ७); कागस्सर- हथौड़े से पीटने से स्फुलिंग (चिनगारी) पृथक् ।
अणुदवि न [दे] प्रभात, सुबह (दे १, १६)। मणुणासं च' (जीव ३ टी)। होते हैं (ठा ५)।
अणुदिअ वि [अनुदित] जिसका उदय न अणुगासिअ [अनुनासिक] देखो ऊपर का | अणुतडिया स्त्री [अनुतटिका] | ऊपर देखो हुआ हो (भग)। पहला अर्थ (वजा ६)।
(पएण ११)। २ तलाव, द्रह आदि का भेद अणुदिअस न [अनुदिवस] प्रतिदिन, हमेशा अणुगी सक [अनु + नी] १ अनुनय करना, (भास ७)।
(नाट)। विनय करना, प्रार्थना करना। २ समझाना, अणुतप्प अक [ अनु+तप् ] अनुपात करना, अणुदिज्जंत वि [अनुदीयमान] उदय में न दिलासा देना, सान्त्वना देना । वकृ. अणुणंतः पछताना । अरणुतप्पइ (स १८४)। प्राता हुआ (भग)। 'पुरोहियं तं कमसोगुणतं' (उत्त १४: भवि); अणुनप्पि वि [अनुतापिन] पश्चात्ताप करने- अणु दिग न [अनुदिन प्रतिदिन, हमेशा अणुगत (गा ६०२)। कवकृ. अणुणिज्जंत, वाला (वव)।
(कुमा)। अणुणिजमाण, अणुगीअमाण (सुपा ३६७; अणताव सक [ अनु + तापय ] तपाना । अणुदिण) वि [अनुदित] १ उदय को से २,१६, पि ५३६)।
संकृ. अणुतावित्ता (सूम २, ४,१०)। अणुदिन्न अप्राप्त । २ फल-दान में अतत्पर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org