Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
उपर्युक्त विचारधाराओं का समन्वय करने से यह स्पष्ट है कि स्वप्न केवल अवदमित इच्छाओं प्रकाशन नहीं, बल्कि भावी शुभाशुभ का सूचक है। फ्राइड ने स्वप्न का सम्बन्ध भविष्यत् में घटने वाली घटनाओं से कुछ भी नहीं स्थापित किया है, पर वास्तविकता इससे दूर है। स्वप्न भविष्य का सूचक है। क्योंकि सुषुप्तावस्था में भी आत्मा तो जागृत ही रहती है, केवल इन्द्रियाँ और मन की शक्ति विश्राम करने के लिए सुषुप्त-सी हो जाती हैं। अत: ज्ञान की मात्रा की उज्ज्वलता से निद्रित अवस्था में जो कुछ देखते हैं, उसका सम्बन्ध हमारे भूत, वर्तमान और भावी जीवन से है। इसी कारण आचार्यों ने स्वप्न को भूत, भविष्य और वर्तमान का सूचक बताया गया है।
मुहूर्त-मांगलिक कार्यों के लिए शुभ समय का विचार करना मुहूर्त है। अत: समय का प्रभाव प्रत्येक जड़ एवं चेतन सभी प्रकार के पदार्थों पर पड़ता है। अत: गर्भाधानादि षोडश संस्कार एवं प्रतिष्ठा, गृहारम्भ, गृह-प्रवेश, यात्रा प्रभृति शुभ कार्यों के लिए मुहूर्त का आश्रय लेना परमावश्यक है।
तिथि–चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों पर से तिथि का मान निकाला जाता है। प्रतिदिन १२ अंशों का अन्तर सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण में होता है, यही अन्तरांश का मध्यम मान है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक तिथियाँ शुक्ल पक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियाँ कृष्ण पक्ष की होती हैं। ज्योतिष शास्त्र में तिथियों की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होती हैं।
तिथियों की संज्ञाएँ—१/६/११ नन्दा, २/७/१२ भद्रा, ३/८/१३ जया, ४/९/१४ रिक्ता और ५/१०/१५ पूर्ण संज्ञक हैं।
पक्षरन्ध्र-४/६/८/९/१२/१४ तिथियाँ पक्षरन्ध्र हैं। ये विशिष्ट कार्यों में त्याज्य हैं।
मासशून्य तिथियाँ-चैत्र में दोनों पक्षों की अष्टमी और नवमी, वैशाख के दोनों पक्षों की द्वादशी, ज्येष्ठ में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, आषाढ़ में कृष्ण पक्ष की षष्ठी और शुक्ल पक्ष की सप्तमी, श्रावण में दोनों पक्षों की द्वितीया और तृतीया, भाद्रपद में दोनों पक्षों की प्रतिपदा . द्वितीया,