Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
नहीं होंगे। और ऐसे मनुष्य अपने सम्बन्धियों तथा माता-पिता की इच्छाओं के लिए अपनी इच्छाओं को बुरी प्रकार से कुचल या बलिदान कर डालते हैं।
यदि भाग्य रेखा जीवन रेखा को छोड़ने के पश्चात् साफ स्पष्ट तथा मजबूत हो तो वह मनुष्य अपनी सारी मुश्किलों को अपने परिश्रम तथा गुणों से विजय करता हैं तथा भाग्य जैसी कोई वस्तु पर अपने जीवन में निर्भर नहीं करता ।
दूसरी विशेष बात जो कि इस रेखा में महत्त्व रखती हैं वह तारीख या वर्ष हैं, जो भाग्य रेखा पर लिखे होते हैं, वे ही वर्ष होते हैं जिनमें कि वह मनुष्य अपनी स्वतन्त्रता या जिस वस्तु को वह अधिक चाहता हैं, प्रवेश करता हैं हर दशा में यह तिथि मनुष्य के जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं।
आगे राजेश दीक्षित का अभिमत हथेली के ऊपर ग्रहों का लक्षण व फल
बताते हैं ।
9
९६२
ग्रह क्षेत्र पर्वत
हथेली पर विभिन्न स्थानों के उभारों को विभिन्न ग्रह क्षेत्र अथवा पर्वत के नाम से पुकारा जाता है। भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में ग्रह - क्षेत्रों का कोई उल्लेख नहीं मिलता, परन्तु पाश्चात्य हस्त रेखाविदों ने सम्पूर्ण हथेली को १० भागों में बाँट कर, प्रत्येक विभाग को एक-एक ग्रह- क्षेत्र का नाम दिया है। अंग्रेजी में ग्रह क्षेत्रों को 'पर्वत' (Mounts) के नाम से पुकारा जाता है। हिन्दी में इन्हें गिरि अथवा मण्डल के नाम से भी अभिहित किया गया है।
का
ग्रह - क्षेत्रों निम्नानुसार किया गया है—
विभाजन