Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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कर हस्त रेखा ज्ञान
कुंदकुसुमसंकाशैः दशनैर्भोगभागितैः।
यावज्जीवेत् धनं सौख्यं भोगवान् स नरो भवेत्॥ कुन्द की कोई के समान शुभ्र दांतो वाला मनुष्य जीवन भर सुख, भोग और धन आदि से युक्त रहता है।
रुक्षपाण्डुरदन्ताश्च ते क्षुधानित्यपीड़िताः।
हस्तिदन्ता महादन्ता स्निग्धदन्ताः गुणान्विताः ।।
रूखे और पाले दांतो वालं मनुष्य सदा भूख से सताये हुए होते हैं। हाथी जैसे दाँतो वाले, बड़े-बड़े दाँतों वाले तथा चिकने दाँतो वाले मनुष्य गुणी होते
द्वात्रिंशद्दशनै राजा एकत्रिंशच्च भोगवान् । त्रिशंदन्ता नरा ये च ते भवन्ति सुभोगिनः।
एकोनत्रिंशदशनैः पुरुषाः दुःखजीविनः॥ __३२ दाँतों वाला पुरुष राजा, ३१ दाँतों वाला सुखी, ३० दाँतों वाला भोगी और २९ दाँतों वाला मनुष्य दुःखी होता हैं।
कृष्णा जिह्वा भवेद्येषां ते नरा दुःखजीविनः । श्यामजिह्वो नरो यः स्यात्स भवेत् पापकारकः । स्थूलजिह्वा प्रधातारो नराः परुषभाषिणः। श्वेतजिह्वा नरा ये च शौचाचारसमन्विताः। पद्मपत्रसमा ये तु भोगवन् मिष्टभोजनाः॥
काली जीभ वाले दुःखी, सांवली (हल्की कालिमामयी) जीभ वाले पापी, मोटी जीभ वाले पुरुष (कड़ा) बोलने वाले सफेद जीभ वाले पवित्र आचार शील, तथा कमल पत्र के समान चिकनी जीभ वाले मनुष्य भोगी तथा मिष्ट पदार्थ खाने वाले होते हैं।
किंचित्तानं तथा स्निग्धं रक्तं यस्य च दृश्यते। सर्वविद्यासु चातुर्य पुरुषस्य न संशयः॥
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