Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
पृष्ठावर्ता च या नारी नाभिश्चापि विशेषत: । भगं चापि विनिर्दिष्टा प्रसवश्रीर्विनिर्दिशेत् ॥ मण्डूककुक्षिका नारी न्यग्रोधपरिमण्डला । एकं जनयते पुत्रं सोऽपि राजा भविष्यति ॥
मेढक के समान कोख वाली तथा बट के पत्ते के समान मण्डल बाली स्त्री
एक ही पुत्र पैदा करती हैं, वह भी राजा ।
स्थूला यस्या: करांगुल्यः हस्तपादौ च कोमलौ । रक्तांगानि नखाश्चैव सा नारी सुखमेधते ॥
जिस स्त्री के हाथ की अंगुलियाँ छोटी हों, हाथ पैर कोमल हों, शरीर और नख से खून झलकता हो वह स्त्री सुख पाती हैं ।
कृष्णजिह्वा च लंबोष्ठी पिंगलाक्षी
दशमासै: पतिं हन्यात्तां नारीं
खरस्वरा ।
परिवर्जयेत् ॥
१०६४
काली जीभ, लम्बे होंठ मंजरी आँख, और तीखे स्वर वाली स्त्री दस महीने में ही पति का नाश करती है। उसको छोड़ देना चाहिये ।
यस्याः सरोमको पादौ तथैव च उत्तरोष्ठाधरोष्ठौ च शीघ्रं मारयते
जिस स्त्री के पैर, पयोधर, ऊपर या नीचे के होंठ रोयेंदार हों वह शीघ्र ही पति को मारती है।
पयोधरौ ।
पतिम् ॥
चन्द्रबिम्बसमाकारौ
स्तनौ यस्यास्तु
निर्मलौ ।
बाला सा विधवा ज्ञेया सामुद्रवचनं थथा ॥
इस शास्त्र का वचन है ।
जिसके स्तन निर्मल चन्द्रबिम्ब के समान हों वह स्त्री विधवा होती है, ऐसा