Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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कर हस्त रेखा शान
या वृक्ष का चिह्न है वह राजपत्नी होगी।
मार्जासक्षी पिंगलाक्षी विषकन्येति कीर्तिता।
सुवर्णपिंगलाक्षी च दुःखिनीति परे जगुः॥ बिल्ली की तरह पिङ्गलवर्ण की आँखों वाली स्त्री को 'विषकन्या' कहा गया है। पर सोने के रंग के समान पिंगलनेत्रा स्त्री दुःखिनी होती हैं ऐसा भी किसी आचार्य का मत है।
पृष्ठावर्ता पतिं हन्यात् नाभ्यावर्ता पतिव्रता।
कट्यावर्ता तु स्वच्छन्दा स्कन्धावर्ताऽर्थभागिनी।
पीठ की भँवरी वाली स्त्री पति को मारने वाली, नाभि की भंवरी वाली स्नी पतिव्रता, काम की *री बाली स्वरसम्रचारिणी और कन्धे की भंवरी वाली धनी होती है।
मध्यांगुलिमणिबन्धनोवरेखा करांगुलिम्।
वामहस्ते गता यस्याः सा नारी सुखमेधते॥
बाँए हाथ की कलाई से बिचली अंगुली तक जाने वाली रेखा, जिसके हाथ में होती है, वह स्त्री सुख प्राप्त करती हैं।
अरेखा बहुरेखा च यस्याः करतले भवेत् ।
तस्या अल्पायुरित्युक्तं दुःखिता सा न संशयः ।। जिस स्त्री की हथेली में बहुत कम रेखायें या बहुत रेखायें हों वह निःसन्देह थोड़े दिन जियेगी और दुःखी होगी।
भगोऽश्वरखुरवद् ज्ञेयो विस्तीर्णं जघनं भवेत् ।
सा कन्या रतिपत्नी स्यात्सामुद्रवचनं यथा॥ जिस कन्या का जननेन्द्रिय घोड़े के खुर के समान हो और जिसका जघन स्थान (घुटने के ऊपर का भाग) चौड़ा हो वह साक्षात् रति के समान होगी-ऐसा इस शास्त्र का वचन है।