Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता |
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पिंगाक्षी कूपगंडा प्रविरलदशना दीर्घजयोर्ध्वकेशी। लम्बोष्ठी दीर्घवक्त्रा खरपरुषरवा श्यामताम्रोष्ठजिह्वा ।। शुष्कांगी संगताश्रू स्तनयुगविषमा नासिकास्थूलरूपा।
सा कन्या वर्जनीया पतिसुतरहिता शीलचारित्र्यदूरा ॥ जिस कन्या की आँखें पिंगल वर्ण की हों, कपोल धंसे हुए हों, दाँत सुसज्जित रूप से न हों, जंघा लम्बी हो, केश खड़े हों; ओठ लम्बें हों; मुँह लम्बा हो; बोली कर्कश हो, तालु, होंठ और जीभ काली हों; शरीर सूखा हो; बात-बात पर आँसू गिरती हो; दोनों स्तन समान न हो; नाक चिपर्टी हो; उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिये। क्योंकि वह पति और पुत्र से रहित होगी, उसके चरित्र भी दूषित होंगे।
शृगालाक्षी कृशांगी च सा नारी च सुलोचना ।
धनहीना भवेत्साध्वी गुरुसेवापरायणा॥ सियार की तरह आँखों वाली, पतले शरीर वाली, सुलोचना स्त्री धनहीन होती हुई भी साध्वी और गुरुजनों की सेवा करने वाली होती हैं।
रक्तोत्पलदला नारी सुन्दरी गज-लोचना।
हेमादिमणिरत्नानां भर्तुः प्राणप्रिया भवेत् ।। कमल के पत्ते के समान हाथी जैसी आँखों वाली सुन्दरी रमणी, सुवर्ण मणि और रत्नों के स्वामी की प्राणप्रिया होती है।
दीर्घागुली च या नारी दीर्घकेशी च या भवेत् ।
अमांगल्यकरी ज्ञेया धनधान्यक्षयंकारी ॥
बड़ी-बड़ी अंगुलियों वाली, और दीर्घ केशों वाली औरत धन-धान्य की नाशक तथा अमंगलमयी हैं।
शंखपद्मयवच्छत्रमामंतत्स्यध्वजा च या।
पादयोर्वा भवेद्यत्र राजपत्नी भविष्यति ॥ जिस स्त्री के दोनों पैर में शंख, पद्म, जौ, छत्र, माला, मछली, ध्वजा