Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
२०६२
जिस स्त्री के जंघों और मुख मण्डल पर रोयें हो तथा शरीर, सूखा हुआ हो उससे सदा दूर ही रहना चाहिये।
यस्याः प्रदेशिनी याति अंगुष्ठादतिवर्द्धिनी।
दुष्कर्म कुरुते नित्यं विधवेयं भवेदिति ॥ जिस स्त्री के पैर के अंगूठे के पास वाली अंगुली अंगूठे से बड़ी हो वह नित्य ही दुराचार करती है, और विधवा होती है।
यस्यास्त्वनामिका पादे पृथिव्यां न प्रतिष्ठते ।
पतिनाशो भवेत् क्षिप्रं स्वयं तत्र विनश्यति॥ जिसकी अनामिका अंगुली पृथ्वी को नहीं छूती ऊपर ही रहती है, उस स्त्री के पति का शीघ्र ही नाश होता हैं, और वह स्वयं नष्ट हो जाती है।
यस्याः प्रशस्तमानो यो हावर्तो जायते मुखे।
पुरुषत्रितयं हत्वा चतुर्थे जायते सुखम् ।। जिसके मुख पर सुन्दर आवर्त (भंवरी) रहती हैं, वह तीन पतियों को नष्ट कर चौथी शादी करती है, तब सुख पाती हैं।
उद्वाहे पिंडिता नारी रोमराजि-विराजिता।
अपि राजकुले जाता दासीत्वमुपगच्छति ॥
रोयें से भरी हुई स्त्री यदि राजकुल में उत्पन्न हों तो विवाहित होने पर वह दासी की तरह मारी-मारी फिरती हैं।
स्तनयो:स्तवके चैव रोमराजिविजराते।
वर्जयेत्तादृशी कन्यां सामुद्रवचनं यथा ॥ जिस स्त्री के दोनों स्तनों के चोरों ओर रोयें हो उसे इस शास्त्र के कथनानुसार छोड़ देना चाहिये।
विवादशीला स्वयमर्थचारिणी परानुकूलां बहुपापपाकिनीम् । आक्रन्दिनीं चान्यगृहप्रवेशिनीं त्यजेत्तु भार्या दशपुत्रमातरं ।।