Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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सीती हैं।
लम्बे-लम्बे केशों वाली होती है, धन्यधान्य को बढ़ाने वाली होती है वह बहुत दिनों तक जीती हैं।
पूर्णचन्द्रमुखी कन्यां बालसूर्यसमप्रभाम् ।
विशालनेत्रां रक्तोष्ठी तां कन्यां वरयेद् बुधः॥
पूर्ण चन्द्र के समान मुँह वाली, सबेरे को उगते हुए सूर्य के समान कान्ति वाली, बड़ी आँखों वाली और लाल होंठो वाली कन्या से विवाह करना चाहिये।
अंकुशं कुण्डलं माला यस्याः करतले भवेत् ।
योग्यं जनयते नारी सुपुत्रं पृथ्वी पतिम् ॥ जिस स्त्री की हथेली में अंकुश, कुण्डल या माला का चिह्न हो वह राजा होने वाले योग्य सुपुत्र को पैदा करती है।
यस्याः करतले रेखा प्राकारांस्तोरणं तथा।
ऑप दास-कुले नाता राजपत्नी भविष्यति॥ जिस स्त्री के हाथ में प्राकार या तोरण का चिह्न हो तो यदि दास कुल में भी उत्पन्न हो, तो भी वह पटरानी होगी।
यस्या: संकुचितं केशं मुखं व परिमण्डलम्।
नाभिश्च दक्षिणावर्ता सा नारी रति-भामिनी॥ जिस स्त्री के केश धुंधराले हों, मुख गोल हो, नाभि दाहिनी ओर घूमी हुई हो, वह स्त्री रति के समान हैं, ऐसा समझना चाहिये।
यस्याः समतलौ पादौ भूमौ हि सुप्रतिष्ठितौ।
रतिलक्षणसम्पन्ना सा कन्या सुखमेधते ।। जिसके चरण समतल हों और भूमि पर अच्छी तरह पड़ते हों, (अर्थात् कोई अंगुली आदि पृथ्वी को छूने से रह न जाती हों) वह रतिलक्षण से सम्पन्न कन्या सुख पाती हैं।