Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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कर हस्त रेखा ज्ञान
बंधण मुवेइ) स्फुटित और विवर्ण रेखा से बन्धन में पड़ता है (णीलासुणिब्बुइण्णो) नील रेखा से उदासीनता आती है (रूक्खासु मिअभोग भागीअ) रूक्ष रेखा से परिमित भोग मिलते हैं।
भावार्थ-हरित रेखा से चोरी का धन प्राप्त होता है। विवर्ण और स्फुटित रेखा से व्यक्ति बन्धन में पड़ता है। नील रेखा से उदासीनता आती है। और रूक्ष रेखा से सीमा में भोग पदार्थ मिलते हैं।। 25 ।।
वराहमिहिर रेखा के बारे में ऐसा कहते है। कि चौकनी और गहरी रेखाएँ धनवान की होती है इससे विपरीत रेखा दरिद्रियों को होती है।
आगे अन्य लेखकों के मत से संक्षिप्त मस्तिक रेखादि का वर्णन करते हुए प्रथम बाणभट्ट का अभिमत कहते हैं।
| प्रथमोऽध्यायः
मस्तिष्क रेखा और उसके परिवर्तन मस्तिष्क रेखा अथवा मनुष्य को मानसिकता का चित्रण सब दशाओं में सबसे मुख्य रेखा समझनी चाहिए।
__ सबसे अधिक ध्यान इसी पर देना चाहिए जिससे कि मानसिकता का ठीक ज्ञान प्राप्त हो सके।
दोनों हाथ ध्यान पूर्वक मिलाने चाहिये-बायाँ हाथ ईश्वर प्रदत्त शक्तियों का द्योतक हैं तथा दाहिना हाथ स्वयं अपने परिश्रम से प्राप्त की हुई शक्तियों का । बायें हाथ की रेखा का तनिक-सा भी फर्क दाहिने हाथ की रेखाओं को ध्यानपूर्वक देखना चाहिए। तथा याद रखना चाहिये। कि रेखा का रूख, झुकाव तथा अन्तध्यान से देखना चाहिए क्योंकि सभी दशाओं में यह मानसिक झुकाव दिखाती हैं। उदाहरणार्थ-यदि बांये हाथ में रेखा अन्त में नीचे की ओर को झकी हो और दायें हाथ में सीधी अथवा हथेली के बीच में होकर जाती हो तो देखने वाला यह कह सकता हैं। कि वह मनुष्य अपना स्वाभाविक मार्ग ग्रहण नहीं कर सकेगा अथवा उसे वातावरण से प्रभावित होकर अपने को अधिक कार्यशील, व्यापारिक रास्ते तथा वातावरण के उपर्युक्त बनने के लिए एक शिक्षा अभ्यास की ओर लेनी पड़ेगी।