Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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कर हस्त रेखा ज्ञान
वरपउमपत्तसरिसा अच्छिण्णा मंसला य संपुण्णा।
ससणिद्धरत्तरेहा धण कणगपडिच्छिआ हत्था॥५८॥ (य) जिसके हाथ (वरपउमपत्तसरिसा) श्रेष्ठ कमल पत्र के समान कोमल हो, (अच्छिण्णा) छिन न हो (मंसला संपुण्णा) मांसल हो पूर्ण हो (ससणिद्धरत्तरेहा) चिकने व लाल रेखा वाले हो तो (धण कणगपडिच्छिआ हत्था) ऐसे हाथ धन और सोने को ग्रहण करने वाले होते हैं।
भावार्थ-जिसके हाथ श्रेष्ठ कमल पत्र के समान कोमल हो छिन्न न हो, मांसल हो पूर्ण हो चिकने हो व लाल रेखा से युक्त हो तो ऐसे हाथ धन और सोने को ग्रहण करने वाले होते हैं। इन चिह्नों के बारे में अन्य जैनाचार्य ऐसा कहते हैं।
कोष्ठाकारस्तथा राशिस्तोरणं यस्य दृश्यते।
कृषिभोगी भवेत् सोऽयं पुरुषो नात्र संशयः॥ जिसके हाथ में कोले का आकार, राशि, किंवा तोरण (वन्दनवार) का चिह्न हो वह पुरुष निःसन्देह, कृषिजीवी होता हैं।
अकुशं कुंडलं चक्रं यस्य पाणितले भवेत्।
विरलं मधुरं स्निग्धं तस्य राज्यं विनिर्दिशेत् ॥
जिसकी हथेली में अंकुश, कुण्डल या चक्र हों उसको निराले और उत्तम राज्य का पाने वाला बताना चाहिये।
(इति पुरुषलक्षणां नाम द्वितीयं पर्व॥२॥) पूअंतिपाणिरेहा णिद्धा जा होति पउम संकासा।
अक्खंडांजलिणिद्धा अच्छिण्णा कोमला जस्स ॥५९।। (पाणिरेहा जा गिद्धा) जिसके हाथ की रेखा (पउम संकासा होति) पद्म के समान होती है (अक्खंडा जलिणिद्धा) अखण्ड होती है, स्निग्ध होती है (अच्छिण्णा