Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 1229
________________ १०४९ कर हस्त रेखा ज्ञान उरोविशालो धनधान्यभोगी शिरोविशालो नूपपुंगवः स्यात् । कटेर्विशालो बहुपुत्रयुक्तो विशालपादो धनधान्ययुक्तः ।। जिसकी छाती चौड़ी हो वह धन धान्य का भोक्ता, जिसका ललाट चौड़ा हो वह राजा, जिसकी कमर विशाल हो वह बहुत पुत्रों वाला तथा जिसके चरण विशाल हों वह धनधान्य से युक्त होता है। वक्षस्नेहेन सौभाग्यं दन्तस्नेहेन भोजनम्। त्वचःस्नेहेन शय्या च पादस्नेहेन वाहनम्॥ वक्षःस्थल (छाती) की चिकनाई से सौभाग्य, दाँत की चिकनाई से भोजन, चमड़े की चिकनाई से शय्या और चरणों की चिकनाई से सवारी मिलती है। अकर्मकठिनौ हस्तौ पादौ चाध्वानकोमलौ। तस्य राज्यं विनिर्दिष्टं सामुद्रवचनं यथा॥ बिना काम काज किये भी जिसका हाथ कठिन (कड़ा) हो, और मार्ग चलने पर जिसके पैर कोमल रहते हों, उस मनुष्य को इस शास्त्र के कथन के अनुसार, राज्य मिलना चाहिये। दीर्घलिंगेन दारिद्र्यम् स्थूललिंगेन निर्धनम्। कृशलिंगेन सौभाग्यं हस्वलिंगेन भूपतिः॥ जिस पुरुष का लिंग (जननेन्द्रिय) लम्बा हो वह दरिद्र, मोटा हो निर्धन, पतला हो वह सौभाग्यशील एवं छोटा हो वह राजा होता है। ललाटे दृश्यते यस्य रेखात्रयमनुत्तरम् । षष्ठिवर्षाणि निर्दिष्टं नारदस्य वचो यथा॥ ललाटे श्यते यस्य रेखाद्धयमनुत्तरम्। वर्षविंशतिनिर्दिष्टं सामुद्रवचनं यथा॥

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