Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
२०४७
| कर हस्त रेखा शाम
अब आगे अन्य आचार्य मनुष्य व स्त्रियों के आंगो-पांग का लक्षण व फल कहते हैं।
पंचदीर्घ चतुर्हस्वं पंचसूक्ष्म पडुनतम्।
सप्तरक्तं त्रिगम्भीरं त्रिविस्तीर्णमुदाहृतम्।।
जैसा कि आगे बताया हैं, मनुष्य के पाँच अंगों में दीर्घता (बड़ा होना) चार अंगों में हस्वता (छोटाई) पाँच में सूक्ष्मता (बारीकी) छ: अंर्गों में ऊँचाई, सात में लम्बाई, तीन में गम्भीरता (गहराई) और तीन में विस्तीर्णता (चौड़ाई) प्रशस्त कही गई है।
बाहुनेत्रनखाश्चैव कर्णनासास्तथैव च।
स्तनयोरुन्नतिश्चैव पंचदीर्घ प्रशस्यते॥
भुजाओं में, नेत्रों में, नखों में कानों में और नाक में दीर्घता होनी चाहिये। स्तनों में दीर्घता के साथ ही साथ कुछ ऊँचाई होनी चाहिये। इन्हीं पाँच अंगों की दीर्घता प्रशस्त बताई गई है।
ग्रीवा प्रजननं पृष्ठं ह्रस्वजंघे प्रपूरिते।
ह्रस्वानि यस्य चत्वारि पूज्यमाप्नोति नित्यशः ।। गर्दन, प्रजनन पीठ और भरी हुई जंघा ये चार अंग जिसके ह्रस्व (छोटे) होते हैं वह सदा पूजा पाता है।
सूक्ष्मान्यंगुलिपर्वाणि दन्तकेशनखत्त्वचः। पञ्च सूक्ष्माणि येषां स्थुस्तेनरा दीर्घजीविनः ।।
अंगुलियों के पोर, दाँत, केश, नख और त्वचा (चमड़ा) ये पाँचों जिन पुरुषों के सूक्ष्म (बारीक) होते हैं, वे दीर्घ जीवी होते हैं।