Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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कोमला जस्स) अच्छिन्न होती है कोमल होती है (पूअंति) तो उसके हाथ पूजे जाते हैं।
भावार्थ—जिसके हाथ की रेखा कमल के समान कोमल हो, अखण्ड हो, चिकनी हो, स्निग्ध हो, अम्किन और कोपल हो तो ऐसी स्थिति वाला हाथ पूजा जाता है।
धर्माचार्य की सूचक रेखा सोहवड़ वायणारी कणिट्टियाहिट्ठि मागया जवा जस्स।
उज्झाऊ अणमिआए जिट्टाहिट्ठाय तो सूरी॥६०॥ (जस्स) जिसके (कणिठियाहिहि मागया जवा) कनिष्ठिका अंगुली के नीचे यव निकले हों (सो हवइ वायवारी) वह मनुष्य वाचनाचार्य होता है (अणमिआए उज्झाउ) यदि अनामिका में यव हो तो उपाध्याय बनता है (जिट्टाहिट्ठाय तो सूरी) और ज्येष्ठा में ऐसा यव हो तो वह आचार्य बनता है।
भावार्थ---जिस मनुष्य के हाथ में कनिष्ठिका में यव हो तो वह वाचनाचार्य बनता है, अनाभिक में यव हो तो उपाध्याय और ज्येष्ठा में हो तो आचार्य बनता
इयकरलक्खणमेयं समासओ दंसिअं जइजणस्स।
पुवायरिएहिं णरं परिक्खिऊणं वयं दिज्जा। (इय करलक्खणमेयं) इस प्रकार का करलक्खण (समासओ दंसिअंजइजणस्स) अच्छी तरह से मैंने व्यक्तियों के लिये कहा है (पुव्वापरिएहि) वह भी पूर्वाचार्यों ने जैसा कहा है वैसा ही (णरं परिक्खिऊणं वयं दिज्जा) मनुष्य की परीक्षा करके व्रत देना चाहिये।
भावार्थ-इस प्रकार का करलक्खण मैंने पूर्वाचार्यों के अनुसार कहा है सो मुनियों को मनुष्य की परीक्षा करके ब्रत देना चाहिये।