Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1234
________________ भद्रबाहु संहिता १०५४ वृषसिंहगजेन्द्राणां गतिर्भोगवतां भवेत्। मृगवज्जल याने (?) च काकोलूकसमा गतिः। द्रव्यहीनस्तु विज्ञेयो दुःखशोकभयङ्करः ।। बैल, सिंह और मस्त हाथी की सी चाल, वाले भोगवान् होते हैं। मृग के समान शृगाल के समान तथा कौए और उल्लू के समान गति वाले मनुष्य द्रव्यहीन तथा भयङ्कर दुःख-शोक से ग्रस्त होते हैं। श्वानोष्ट्रमहिषाणां च (?) शूकरोष्ट्रधरास्ततः। गतिर्येषां समास्तेषां ते नरा भाग्यवर्जिताः ।। कुत्ते, ऊँट, भैंसे और सूअर की तरह गतिवाला पुरुष भाग्यहीन होता है। दक्षिणावर्तलिंगस्तु स नरो पुत्रवान् भवेत् । वामावर्ते तु लिंगानां नरः कन्याप्रजो भवेत् ।। जिस पुरुष का शिश्न (जननेन्द्रिय) दाहिनी ओर झुका हो वह पुत्रवान तथा जिसकी बाँई ओर झुका हो वह कन्याओं का जन्मदाता होता है। ताम्रवर्णमणिर्यस्य समरेखा विराजते। सुभगो धनसम्पन्नो नरो भवति तत्त्वतः॥ जिसके लिंग के आगे का भाग (मणि) की कान्ति लाल हो तथा रेखायें समान हों वह व्यक्ति सौभाग्यशील तथा धनवान् होता है। सुवर्णरौप्यसदृशैर्मणियुक्तसमप्रभैः प्रवालसदृशैः स्निग्धैः मणिभिः पुण्यवान् भवेत्॥ सोना, चाँदी, मणि, प्रवाल, (मूंगा) आदि के समान प्रभाव वाले चिकने मणि (शिश्नाग्रभाग) वाले पुरुष पुण्यवान् होते हैं। समपादोपनिष्टस्य गृहे तिष्ठति मेदिनी। ईश्वरं तं विजानीयात्प्रमदाजनवल्लभं॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 1232 1233 1234 1235 1236 1237 1238 1239 1240 1241 1242 1243 1244 1245 1246 1247 1248 1249 1250 1251 1252 1253 1254 1255 1256 1257 1258 1259 1260 1261 1262 1263 1264 1265 1266 1267 1268