Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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कर हस्त रेखा ज्ञान
धनादि रेखा का फल
सूई अग्गिसिहा वा सत्ति वा सिरी भज्जए जस्स । धणवंस आउरेहं तारिसयं जिद्दिसे तस्स ॥ ५६ ॥
यस्य
धर्मवान्
(जस्स) जिसके हाथ में ( सूई अग्मिसिहा ) सुई, अग्नि, शिखा ( वा सत्ति वा सिरी भज्जए) या शक्ति अथवा श्री हो तो (तस्य ) उसके ( धणवंस आउरेहं ) धन, वंश, आयु रेखा (तारिसयं णिद्दिसे) उसी के अनुसार फल बताती है।
भावार्थ — यदि जिसके हाथ में सुई, अग्नि शिखा या शक्ति अथवा श्री हो तो उसके धन, वंश, आयु रेखा उसके अनुसार ही फल बताती हैं। करसंतले ।
दृश्यते
मीनसमा रेखा भोगवाचैव
जायते ॥
बहुपुत्रश्च
जिसके हाथ में मछली की रेखा हो वह धर्मनिष्ठ, भोगवान् और अनेक पुत्रों वाला होता है।
तुला यस्य तु दीर्घा च करमध्ये च दृश्यते । वाणिज्यं सिध्यते तस्य पुरुषस्य न संशयः ॥
जिसके हाथ में लम्बी तराजू के आकार की रेखा हो वह पुरुष निश्चय ही उत्तम व्यापारी होता है।
अंकुशो वाऽथ चक्रं वा पवज्री तथैव च । तिष्ठन्ति हि करे यस्य स नरः पृथिवी - पतिः ॥
जिसके हाथ में अंकुश, चक्र, कमल अथवा वज्र का चिह्न हो वह मनुष्य पृथ्वी का मालिक (राजा) होता है।
शक्तितोमर बाणञ्च विज्ञेयो विग्रहे शूरः
यस्य करतले शस्त्रविधैव
भवेत् । भिद्यते ॥