Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
१०१४
___ यह अकेला चिह्न ही माता-पिता के विचारने योग्य हैं और वे लोग इसे देख सके तो बच्चों के मानसिक विकास में सहायता कर सकते हैं।
मस्तिष्क रेखा जीवन से मिली हुई। ___ यह रेखा हर दशा में अत्यधिक भावुकता बतलाती हैं जो कि चिन्ता की ओर झुकाव तथा आत्म-विश्वास की (Caution) कमी बतलाती हैं। (1-2-1) सबसे बुद्धिमान मनुष्य तक भी इस चिह्न को रखने से अपने ऊपर सख्ती से काबू रखते है और सदा अपनी योग्यताओं तथा बुद्धि का मूल कम आंकते हैं।
जब उसी दशा में रेखा कुछ नीचे की ओर झुकी होती हैं तो भावुकता और भी बढ़ जाती हैं ऐसी रेखा अधिकतर कलाकारों, चित्रकारों तथा और भी जीवन के अन्य क्षेत्रों में भावुकता तथा कला की इच्छा रखते हैं यहाँ तक कि वह बहुत दिनों तक भी उन्नति नहीं करते यदि इसके विपरीत मस्तिष्क रेखा जीवन को मिलाती हुई हथेली में सीधे शुक्र के मानसिक उभार की ओर चली जाती हैं तो वह मनुष्य यद्यपि अधिक भावुक हैं तथापि अपनी इच्छाओं को अधिक शक्ति रखता हैं। ऐसे मनुष्यों को अधिक भावुक होने के कारण इतना काम नहीं मिलता जितना की उन मनुष्यों को जिनकी रेखा नीचे की तथा विचारात्मक उभार Mount of Imagination की ओर झुकी हुई होती है। जितनी भी मस्तिष्क रेखा सीधी होगी उतना ही मनुष्य अपनी रायों को पूरा करने की ओर झुका होगा अक्सर यह भावुक तथा दुर्बल मनुष्य किसी लक्ष्य या उद्देश्य से सम्बन्धित लड़ाई तथा जिस रास्ते को इनका मन स्वीकार करता हैं तथा ठीक बतलाता है। उस विचार को पूरा करते हैं यदि ऐसे मस्तिष्क रेखा हाथ में दूर तक चली गई हैं और सीधी मानसिक शुक्र के उभार को छूती हैं तो वह मनुष्य अत्यधिक दृढ़ इच्छाओं तथा विचारों के अपना कर्त्तव्य समझता हैं और शक्ति रखता हैं।
इन दो किस्म के हाथों में एक तो जिसकी मस्तिष्क रेखा झुकी हुई तथा दूसरे जिसकी मस्तिष्क रेखा सीधी हाथ के पार चली गई हो, देखने के फर्क ने कितने ही इस विद्या के पढ़ने वालों को उनके उत्तर में गलती रक्खा हैं कई स्थानों पर जबकि मस्तिष्क रेखा चिह्नाकार (3-3 चित्र 2) तथा जुड़ी हुई हो और जबकि