Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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कर हस्त रेखा ज्ञान
के लिये प्रदर्शित करती हैं ऐसा मनुष्य बहुत एकाग्रचित्त होता हैं। यदि वह अपनी मानसिक शक्ति किसी लक्ष्य की ओर लगा देता हैं, तो साथ ही साथ अपना दिल और इच्छा भी लगा देता हैं। यदि वह किसी मनुष्य से प्रेम करने लगता हैं तो वह उसके साथ अपनी मानसिक शक्ति को पूर्णरूप से लगा देता है ऐसी दशा में यह मालूम पड़ता है। कि मानो मानसिकता की यह दोनों दशाएं (मानसिक तथा रसिक) आपस में एक-दूसरे के साथ मिली हुई हैं लेकिन मैंने इसे कभी भी भाग्यशाली चिह्न नहीं पाया हैं।
श्री
चिन रम्य
प्रथम स्थान पर तो ऐसे मानव होते ही बहुत कम हैं तथा अपने जीवन में कोई शान नहीं रखते तथा जिसके फलस्वरूप वे अपने को अकेला तथा दूसरों से भिन्न प्रतीत करते हैं प्राय: उनकी इच्छाओं पर शीघ्र ही आघात पहुँच जाता