Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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कर हस्त रेखा ज्ञान
वर पउम संखसत्तिय भद्दा सणकुंकुसहिथ भय कुंभं।
वसह गय छत्त चामर दीसहइ वज्जं च मगरं॥47॥
(वर) श्रेष्ठ (पउमसंख सन्तिय) पद्य, शंख, स्वस्तिक (भद्दासण कुंकुमत्थि भय कुंभ) भद्रासन, कुंकुं जलकाकुंभ (वसह गय छत्त चामर) बैल, हाथी, छत्र, चामर (वज्ज च मगरं च) वज्र, मगर, जिसके हाथों से (दीसहइ) दिखे और !
भावार्थ-जिसके भी हाथों में कमल, शंख स्वस्तिक भद्रासन, कुंकुं जल का कुंम्भ बैल हाथी, छत्र चामर, वज्र, मगर दिखे और47॥
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THE STAR THE ISLAND
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THE CROSS
THE SPOT
THE GRILE
THE SQUARE
THE CIRCLE तोरण - विमाण केऊ जस्सेए होंति करयले पयडा।
तस्स पुण रज्जलाहो होही अचिरेण कालेण ॥ 48॥ (तोरण विमाण केऊ) तोरण, विमान, केतु (जस्सेए होति करयले पयडा) जिसके भी हाथ में प्रकट दिखे तो (तस्सपुण रज्जलाहो) उसकोपुनः राज्य का लाभ होता है (अचिरेण कालेण होही) वह भी शीघ्र ही ।