Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ,
१०४०
भावार्थ-तोरण, विमाग, केतु ये सब जिसके भी हाथों में दिखे तो समझो ऐसे मनुष्य को शीघ्र ही राज्यलाभ होने वाला है। ४८॥
मच्छेण अण्णपाणं कुंते सोभग्गभोयलाहं च।
दामेण जुअवलई सिंह सेणाधई हो ॥ ४ ॥
(मच्छेण अण्णपाणं) अगर में मच्छ हो तो अन्न पान बहुत मिलता है (कुंते सोभाग्ग भोयलाहं च) भाला हो तो सौभाग्य और भोग लाभ होता है (दामेण जुअलई) माला हो तो बहुत बल प्राप्त होता है (सिंहे सेणावई होइ) सिंह हो तो सेनापति पद प्राप्त होता है।
भावार्थ-अगर मनुष्य के हाथों में मच्छ हो तो अन्न पान का बहुत लाभ होता है। भाला हो तो सौभाग्य व भोग पदार्थ मिलते हैं । माला हो तो बहुत शक्तिशाली होता हैं, सिंह हो तो सेनापति पद मिलता है॥४९॥
होइ धणं धाणं व अआणं वसहे विसत्थए सुक्खं।
चक्केण होइ वरसर सरवत्थे इच्छिया भोया॥५०॥ (वसहे) बैल के होने पर (धणं धाणं व अआणं होइ) धन-धान्य की प्राप्ति व आज्ञा देने का काम मिलता है (विसत्थए सुक्खं) स्वस्तिक के होने पर सुख की प्राप्ति होती है, (चक्केण होइ वरसर) चक्र हाथ में होने पर उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति होती है (सरवत्थे इच्छिया भोया) श्रीवत्स के होने पर इच्छित भोग की प्राप्ति होती है।
भावार्थ-मनुष्य के हाथों में बैल हो तो धन-धान्य की प्राप्ति होती है, आज्ञा ऐश्वर्य का सुख मिलता है स्वस्तिक के होने पर सुख की प्राप्ति होती है। चक्र के होने पर उत्तम लक्ष्मी मिलती है, श्री वत्स के होने पर इच्छित भोग प्राप्त होते हैं।
इन चिह्नों के बारे में वाराहमिहिर ऐसा कहते हैं। कि वज्राकार रेखा हो तो मनुष्य को धनी बनाती है, मीन पूंछ से विद्यावान, शंख, छत्र, पालकी, हाथी,