Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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2) इसके बाद वाली दशा में यह इतनी नीचे भी जा सकती हैं जितनी कि कलाई और जब तक उसके अन्त में कोई द्वीप या (Cross) गुणा का चिह्न न हो आत्मघात करने का कोई खतरा नहीं है ऐसी दशाओं में अत्यधिक विचारात्मक भावुकता तथा (Melanchol and Mordidness) उदासीनता और अस्वस्थता की प्रवृत्ति पाई जाती है लेकिन साथ ही किसी बोझ के पड़ने से दिमाग की कमजोरी नहीं होती जैसा कि दूसरी हालत में जो कि अपने खून करने की प्रवृत्ति में पाई जाती
मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग
मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा से अलग होने की अपेक्षा जुड़ी हुई अधिक पाई जाती हैं जबकि जगह ज्यादा चौड़ी नहीं होती (3-3 चित्र 1 ) तो यह विचार स्वतन्त्र ( शीघ्र निर्णय करने तथा एक प्रकार की मानसिक शक्ति जो कि जीवन संग्राम में बहुत ही अमूल्य है) की द्योतक है लेकिन जब तक मस्तक रेखा साथ ही साथ स्पष्ट तथा हथेली के आर-पार होकर जाती हैं तो वह मनुष्य दूसरों के ऊपर अधिक प्रभाव रखता है लेकिन उनकी योग्यतायें अधिक उज्ज्वल रूप से प्रकाशित हो यदि वे सार्वजनिक कार्यों में भाग लें ऐसा चिह्न रखने वाले उनकी अपेक्षा जिनकी कि जीवन-रेखा तथा मस्तिष्क रेखा एक साथ जुड़ी हों कम (Hard students) मेहनत करने वाले विद्यार्थी होते हैं लेकिन उनके अन्दर विचार शक्ति इतनी तीक्ष्ण होती हैं कि वे एक ही दृष्टि में उस बात को समझ लेते हैं जिसको कि दूसरे बहुत परिश्रम से समझ पाते हैं लेकिन इस खुली मस्तिष्क रेखा (Open line of Head) के रखने वाला जीवन में कोई लक्ष्य उद्देश्य रखता हैं। बिना किसी लक्ष्य के वे शान्त समुद्र पर चलने वाली नौका के समान हैं। वे अपना जीवन निरुद्देश्य ही व्यतीत कर सकते हैं। जबकि कोई उसके लिये पुकार न आवे या इच्छाओं का ज्वार भाटा उनके रास्ते को न बदल दे और उनको आगे ले जावे उसी प्रकार की रेखा लेकिन झुकी हुई इन दोनों प्रकार की रेखाओं से अधिक अनिश्चित हैं क्योंकि वह मनुष्य अब तक आवेश या इच्छा नहीं आती तो वह मनुष्य यद्यपि, कुशाग्र बुद्धि का तथा होशियार है पर अपना जीवन यों ही नष्ट, कुछ न करते