Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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कनिष्ठिकांगुलदंशात् रेखा तय गच्छति।
अविच्छिन्नानि वर्षाणि विंशत्यायुर्विनिर्दिशेत् । भावार्थ-वही (कनिष्ठि के अध: प्रदेश वाली) रेखा यदि कनिष्ठा से मूल तक जाकर ही रह जाय तो आयु के बीस वर्ष होंगे।
रेखा स्वरूप द्वारा गाथा पल्लविआ विच्छिण्णा विरला विसमा य णिद्धिसे।
आ फुडिअ विवपणा नीला रूक्खा तहा चैव ॥23॥ (रहा) आचार्यों ने रेखा के इस प्रकार भेद कहे है (पल्लविआ) पल्लवित (आफुडिअ) अस्पष्ट (विवण्णा) विवर्ण (नीला) नील वर्ण को (रूक्खा) रूक्ष (तदा चैव) इसी प्रकार (णिद्धिसे) कहा गया है।
भावार्थ—यहाँ रेखाओं के भेद इस प्रकार कहे गये हैं। पल्लवित, विच्छिन्न, विरल, विसम, अस्पष्ट, विवर्ण, नील, रूक्ष आदि।। 23 ।।
आयु रेखा और धन रेखा पल्लविया सकिलेसा विछिण्णासु पावए महादुक्खें।
विरला धणव्वयकरी णीइ धणं णत्थि विसमासु ।। 24॥
(पल्लविया सकिलेसा) पल्लवित रेखा क्लेश देने वाली होती है (विछिण्णासु पावए महादुक्खं) विच्छिन्न रेखा महादुःख पहुँचाती है (विरला धणव्वयकरी) विरल रेखा धन खर्च कराती है (णीइ धणं णत्थि विसमासु) विषम रेखा अनीति का धन अर्जन कराती है।
भावार्थ-पल्लवित रेखा क्लेश दायिनी होती है, विच्छिन्न रेखा महादुःख देती है विरल रेखा धन खर्च कराती है, विषम रेखा अनीति का धन प्राप्त कराती है।। 24 ।।
हरियासु चोरिय धणं फुड़ि अविवण्णासु बंधण मुवेइ।
णीलासुणिव्वुइण्णो रूखासु मिअभोग भागीअ॥25॥ (हरियासु चोरिय धणं) हरित रेखा से चोरी का धन आता है (फुडि आविवण्णासु