Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
हो जाते है। मनुष्य के स्वभाव को स्पष्टतया पढ़ लेते है । वे धोखा देने तथा क्रोध में आने से बहुत कृपा करते हैं। और जब वे सोचते ही तो मनुष्य को अपनी नाराजगी की दृढ़ता से चकित कर देते है ।
यदि उनके भाव एक बार उभर जाते हैं तो वे सच्चे दोस्त बना लेते है और अपने मित्र के लिए हर एक बलिदान करने को तैयार रहते है। लेकिन यदि वे जान लें कि उनको धोखा दिया गया है तो नुकसान पहुँचाने जैसी किसी भी बात से नहीं रुक सकते है ।
वे जनता की भलाई के लिए बहुत कार्यशील होते हैं वे अपना बहुत - सा समय तथा धन अच्छे कामों के लिए दे देते हैं। किन्तु देते अपनी इच्छा से ही है शनि की Positive उभार वाले मनुष्य की तरह से भी दृढ़ विचार धर्म के सम्बन्ध में रखते है और विशेषकर धार्मिक जीवन में लगातार उत्सवों तथा निरीक्षणों के विषय में रुचि रखते है ।
वे प्रथम प्रकार के मनुष्यों से इन विषयों में पृथक् होते हैं, कि वे दिन-प्रतिदिन जनता की सभाओं में दिलचस्पी लेते जाते हैं। वह सिनेमा थियेटर तथा आमोद-प्रमोद की वस्तुओं को चाहते है किन्तु एक भी सत्य रूप से जीवन में अकेलापन महसूस करते है। वे अपनी आँखों में बहुत ही अधिकार करने की शक्ति रखते है । यद्यपि वे स्वयं कमजोर होते है। तो भी जोशीले तथा दुर्बल रोगी पर बहुत प्रभाव रखते हैं। और पागल के ऊपर भी अपने जीवन में ऐसे वाकयातो से वे भाग्य द्वारा ही मिलाये जाते है ।
स्वास्थ्य — ऐसे मनुष्य पेट की दुर्बलता तथा आमाशय की बीमारियों से ग्रसित रहते है और साधारण चिकित्सा उनका दुःख दूर करने में असफल रहती
है।
वे बुरे खून का दौरा, हाथ पैर ठण्डे बहुत ही कमजोर दाँत तथा घुटने, पैर और अंगों की आकस्मिक चोटों से ग्रसित रहते हैं।
वे बहुत कम स्वास्थ्य को मजबूत समझते ही तो भी वे रोकने की बहुत बड़ी शक्ति रखते है। और जब उनकी शक्ति पर पुकार आती है तो वे अपनी शक्ति से दूसरों को चकित कर देते है। विशेषकर यदि वे किसी प्रकार भी यह जान पाये कि उनका कर्त्तव्य या ध्येय उलझन में है।