Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
| भद्रबाहु संहिता ।
जैसा कि इसके नाम से प्रकट होता है कि यह रेखा दृढ़ तथा झगड़ालू प्रकृति को बताती हैं तथा वह मनुष्य स्वाभाविक ही खतरों व झगड़ों में घुसता है। यदि वह गहरी तथा लाल रंग की हो तो वह सब खतरों आकस्मिक चोटों जो कि दूसरे हिस्सों में प्रकट होती हैं, को बढ़ा देती है।
यदि इसमें से कोई शाखा निकलती हो और वह (Line) के उभार तक जाता है (५-५ चित्र १०) तो वह मनुष्य गुस्से तथा बेचैनी की ओर झुका होता है। मानसिकता की कमजोर रेखा के साथ वह मनुष्य शराबी तथा और बुरे स्वभावों का होता है और उस स्थान पर जहाँ कि यह जीवन रेखा से पार होती हैं। तो उस उम्र में उस मनुष्य की बुरे स्वभाव से बुलाई जाने वाली मृत्यु होती है।
यह अक्सर छोटे-मोटे या गुदगुदे चौकोर हाथों पर या छोटे हाथों पर होती है। लेकिन जब पतले लम्बे तथा मोटी हथेली पर हो तो वह अत्यधिक चैतन्यता बीमारी को रोकने की शक्ति दुर्बलता बहुत ही तेज लगभग चिड़चिड़े स्वभाव को बतलाती है। कोई टूटी हुई जीवन की रेखा अपने पीछे शुक्र रेखा को लिए हुए मृत्यु का अधिक खतरा उस उम्र पर जहाँ कि वह रेखा टूटी हुई है दिखाती है। लेकिन वह खतरा उस चैतन्यता से , जो कि शुक्र रेखा से प्रदर्शित होती है विजय किया जाता है।
भाग्य रेखा स्वाभाविक ही हाथ की मुख्य रेखाओं में से हैं (१-१ चित्र ११) एक मनुष्य कभी भी यह नहीं बता सकता कि क्यों यह रेखा बिना किसी शक के कम से कम मनुष्य जीवन की विशेष घटनाओं को बतलाती हैं।
__ यह देखा जाता हैं कि पैदायश के वक्त भी यह रेखा स्पष्ट तथा उस बच्चे के भाग्य को, जो कि अभी तक भविष्य के ही गर्त में छिपा हैं बतला देती हैं।
कुछ स्थानों पर यह छायादार या कमजोर होती है मानो अभी तक भाग्य का पथ पूर्ण रूप से बना नहीं हैं जबकि कुछ स्थानों पर यह भाग्य के हर एक कदम असफलता या सफलता, खुशी या दुःख आदि को मील के पत्थर ( ) के समान बतलाती चलती हैं।
सभी विद्वानों का कथन है कि कुछ मनुष्य दूसरों की अपेक्षा अधिक भाग्य के खिलौने होते हैं, किन्तु वे ऐसे क्यों होते हैं। अब तक भी विद्यार्थी को चकित कर देते हैं।