Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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हस्त रेखा ज्ञान
यदि प्रथम मंगल- क्षेत्र निम्न हो तो जातक अधार्मिक, कलह-प्रिय, अत्याचारी तथा पैतृक सम्पत्ति को नष्ट करने वाला होता है। द्वितीय मंगल क्षेत्र निम्न हो तो जातक साहसहीन होता है। यदि दोनों ही मंगल क्षेत्र निम्न हो तो भीरु स्वभाव, निरुपद्रवी, निराभिमानी, अविचारी, अधार्मिक, पैतृक सम्पत्ति-विहीन तथा फेफड़ों का रोगी होता है।
यदि दोनों मंगल क्षेत्र उन्नत हों तथा अन्य सभी ग्रह क्षेत्र दबे हुए हों तो जातक स्थावर - सम्पत्ति एवं भू-स्वामी होता है।
यदि प्रथम मंगल क्षेत्र बुध पर्वत की ओर झुका हुआ हो तो जातक साहसी तथा दूसरों को नेक सलाह देने वाला होता है।
यदि द्वितीय मंगल क्षेत्र गुरु क्षेत्र की ओर झुका हुआ हो तो जातक धैर्यवान, आत्मसंयमी तथा आत्मरक्षा के गुणों से युक्त होता है।
यदि दोनों मंगल क्षेत्र क्रमशः बुध तथा गुरु क्षेत्र की ओर झुके हुए हों तो जातक धीर, साहसी, आत्म-नियन्त्रक तथा विचारवान् होता है।
यदि प्रथम मंगल क्षेत्र निम्न हो तथा बुद्ध एवं चन्द्र के क्षेत्र उन्नत हों तो जातक को अमि, शस्त्र, त्वचा रोग एवं भूत-प्रेतादि की पीड़ा होती है।
यदि प्रथम मंगल तथा बुद्ध क्षेत्र का निम्न भाग अधिक उन्नत हो और वहीं पर एक त्रिभुज चिह्न भी हो ( चिह्नों के विषय में आगे लिखा जाएगा) तो जातक उच्चकोटि का वीर तथा सेनानायक होता है।
यदि प्रथम मंगल, बुद्ध तथा चन्द्र क्षेत्र का मध्यभाग उन्नत हो तो जातक साहसी एवं आत्मानुशासनी होता है।
यदि केवल प्रथम मंगल तथा चन्द्र क्षेत्र ही उन्नत हों तो जातक काल्पनिक, कवि, एकान्तप्रिय एवं उदासीन प्रकृति का होता है।
यदि केवल द्वितीय मंगल तथा गुरु क्षेत्र ही उन्नत हों तो जातक साहसी एवं झगड़ालू प्रकृति का होता है।
यदि केवल मंगल एवं शनि ही उन्नत हों तो जातक द्वेषी स्वभाव का होता
है।
यदि अन्य पर्वतों की अपेक्षा केवल मंगल तथा सूर्य क्षेत्र ही उन्नत हों तो जातक सत्यवादी, सदाचारी, ज्ञानी तथा शीलवान होता है।