Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
पूर्ण होते हैं तथा दूसरों के छोटे-छोटे दोष भी देखा करते हैं तथा वे अपने विचारों को अन्योकित पूर्वक कहते हैं। जो कि जितने ही अच्छे उतने ही तीक्ष्ण भी।
सारे व्यापारिक कामों में जहाँ कि सूक्ष्म मानसिकता लाभकारी होती हैं। के सारे विरोधों को दूर रख देते है। यदि वे उस बहस में दिलचस्पी लेते हो तो वे बातचीत करने में बहुत ही पटु होते हैं लेकिन सुनने वालों को जैसे कि वे आरम्भ में थे, वैसे ही अन्त में भी छोड़ देते हैं।
यदि उनको उन्हीं के स्वभाव में लिया तो बहुत ही खुश मनुष्य होते हैं लेकिन जो वे कल थे। वैसे ही आज उन्हें सोचना भूल है। वे सोचते हैं कि वे संसार में सबसे अधिक विश्वासी तथा सच्चे मनुष्य हैं और कहानी सुनाते समय भी सच्चे ही हैं लेकिन उनके लिए समय ही जीवन हैं। और एक दिन या एक सप्ताह में वह कहानी दूसरा ही रंग धारण कर लेती है।
ऐसे मनुष्यों में कोई भी अपने चरित्र को ऐसा नहीं मानता किन्तु उनके चरित्र का तनिक सा अध्ययन ही मनुष्य को यह बतला देता हैं कि यह उनके चरित्र की सच्ची बात है लेकिन वह मानसिक कार्य जिसमें परिवर्तन तथा बुद्धि की आवश्यकता हो तो उनको बहुत पसन्द आती है। वे अधिकतर कुशल नट, वकील, जनता में व्याख्यान देने वाले, कम्पनियों को तरक्की देने वाले या व्यापार में नये कायदों को निकालने वाले होते हैं।
सारे जीवन में जो कि दिमाग की सूक्ष्मता का काम हैं, इसमें सफलता प्राप्त करते है। यदि वे अपने में इच्छाशक्ति तथा लक्ष्य की एकता को बढ़ा देते
स्वास्थ्य-जो कुछ बीमारी दिमाग को नुकसान पहुँचा सकती हैं दिमाग की कमजोरी तथा चिन्ता से आमाश्य की बीमारी, फालिज, जीभ की विपदा, सिर में दर्द, स्वप्न आदि बामारियाँ हो जाती है। इन्हें गले की कमजोरी और विशेषकर आँखों तथा नाक की तकलीफ हो जाती है।
बुध का (Negative) उभार जब मनुष्य 21 अगस्त तथा 27 सितम्बर से 3 अक्टूबर तक की तारीखों