Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता |
१९४
(7) पर्वत या मनुष्य के सिर का चिह्न लेखक विद्वान् गम्भीर धनी व सलाह देने वाला।
(8) ग्राम-जागीरदार नगर बसाये। (9) ढाल-साहस रहित भीरू डरपोक कायर ।
(10) तलवार या बी–सेनापति, वीर सेनानि, शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला।
(11) गदा-वीर दल का अधिपति। (12) मसल-लोभी, ईा. करने वाला लालची। (13) ओखली–दरिद्री होकर भूखा मरे।
(14) चमची—यह चिह्न भी दरिद्री का है, परन्तु कुरूप होना भी प्रदर्शित करता हैं।
(15) घोड़ा-वैभव से पूर्ण श्रेष्ठ घुड़सवार । (16) सिंह-निर्दयी वृत्ति वाला परन्तु वीर। (17) सर्प-वैभव से सम्पन्न धनी। (18) हाथी--प्रजा में पूज्यनीय अमीर।
(19) मन्दिर-मस्जिद पुजारी, आस्तिक वृत्ति वाला ज्ञानवान परन्तु सांसारिक सुखों से रहित।
(20) चौपड़-शतरंज आदि विभिन्न खेलों का पक्का खिलाड़ी। धनवान। (21) कौआ-विश्वासघाती दूसरे के धन का हरण करने वाला। (22) घट-मित्र विशेष पदाधिकारी नृपति।
(23) अंकुश व कुण्डल–यदि आपस में मिले हो तो परोपकारी साथ ही अत्यधिक धनी।
(24) सूर्य चन्द्र-वार एक छत्र नृपति परन्तु असामायिक मृत्यु। (25) पेड़-प्रसन्न मुखमण्डल वाला, वीर व गाँव का मुखिया आदि। (26) चौकी–श्रेष्ठ जमींदार व प्रतिष्ठित शासक । (27) रथ-उपर्युक्त सवारी वाला अमीर । (28) तला--तराजू व्यापारिक कार्य करने वाला।