Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ।
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अवश्य हैं तो नये विज्ञापनों तथा छोटे डॉक्टरों के शिकार रहते हैं। वे मुश्किल से ही किसी अत्तार की दुकान में बिना कुछ लिये चलते हैं और यदि वे किसी डॉक्टर के पास बैठ गये तो निश्चित रूप से एक नुस्के के साथ लौटेंगे।
इनका सबसे बड़ा अवगुण यही हैं कि हर किसी से अपना दुःख कह देते हैं और किसी भी किस्म के तनिक से दुःख दर्द को बहुत बढ़ा कर सोचते हैं।
इसके विपरीत प्रकृति और किसी की अपेक्षा इनके लिए अधिक लाभकारी हैं। दिमाग की शक्ति, ग्राम्य जीवन तथा खुली हवा इनके सारे दुःख दर्दो को भविष्य के अन्धकार में ही रोक सकती है।
किन्तु यदि बुरे तथा गन्दे वातावरण में रहते हैं तो उनका स्वास्थ्य शीघ्रता से गिर जाता है। और यदि वे किसी खुले स्थान में नहीं बदलते तो दुनियाँ में कोई भी दवाई उन्हें आगम नहीं दे सकती।
वृहस्पति का उभार और उसके अर्थ वृहस्पति का उभार पहली अंगुली के बीचे होता हैं (चित्र 6 भाग 2) जबकि यह बड़ा होता हैं। तो राज्य करने की इच्छा बतलाता हैं दूसरों पर हुक्म करने तथा किसी संगठन को शुरू करने किसी नये कार्य को करने की इच्छा बतलाता है। लेकिन ये अच्छी हो, स्पष्ट तथा लम्बी हो। लेकिन हो। लेकिन जब रेखा बुरी होती हैं तो बड़ा उभार घमण्ड तथा हद दर्जे का अहंकार, अपने में विश्वासी तथा स्वेच्छचारी मनुष्य बतलाता हैं लेकिन एक अच्छे हाथ पर कोई भी उभार बहुत अच्छा नहीं होता और, सफलता का कोई निश्चित चिह्न केवल लक्ष्य तथा स्वाभाव की दृढ़ता से नहीं होता।
यह उभार Posivite उस समय माना जाता हैं जबकि मनुष्य इक्कीस नवम्बर से बीस दिसम्बर या अट्ठाईस दिसम्बर तक पैदा होता हैं। ऐसे मनुष्य स्वाभाविक ही इच्छुक, निडर तथा जो भी वे शुरू करते है। उसे सोच कर शुरू करते हैं। लेकिन अपने विचारों पर चलते हैं तो वे प्राय: कन्धे से सीधा वार करते हैं। या अपनी इच्छा स्पष्टतया प्रकट करते हैं और कट्टर शत्रु होते हैं।
जो कुछ भी वे करते हैं उसे एकाग्रचित होकर करते हैं और यदि वे अपनी