Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
यदि शुक्र क्षेत्र मणिबंध (केतु क्षेत्र) की ओर झुका हुआ हो तो जातक नृत्यकला में कुशल होता है। और उसी के माध्यम से धनोपार्जन कर सुखोपभोग
करता है।
राहु-क्षेत्र - यदि राहु क्षेत्र उन्नत हो तो जातक चतुर, संकल्प, स्वार्थ साधक, अवसरवादी, धन-संचयी, गुप्त रहस्यों को छिपाने वाला, तार्किक, प्रपंची, स्वतन्त्र चेता, भौतिक शक्ति, सम्पन्न तथा नीच कर्मों से धन कमाने वाला होता है।
यदि राहु क्षेत्र निम्न हो तो जातक क्रोधी, कलही विवादी, निस्तेज, चिन्तातुर, निर्धन, अपव्ययी, ऋणी तथा आयहीन होता है। यह पैतृक सम्पत्ति को नष्ट करने वाला तथा मस्तिष्क एवं जनेन्द्रिय सम्बन्धी रोगों से पीड़ित रहने वाला होता है।
टिप्पणी-राहु क्षेत्र चूंकि अन्य ग्रह क्षेत्रों से घिरा होता है, अतः अन्य ग्रह क्षेत्रों के उन्नत होने के कारण यदि राहु क्षेत्र निम्न ( धंसा हुआ ) प्रतीत हो तो उसे यथार्थ में ही निम्न नहीं समझ लेना चाहिए। अन्य ग्रह क्षेत्रों की स्थिति को देखकर ही राहु क्षेत्र की उच्चता अथवा निम्नता के विषय में निर्णय करना चाहिए। केतु, हर्षल, नेपच्यून तथा प्लूटो के क्षेत्र —— इन ग्रह क्षेत्रों के प्रभाव के विषय में अभी विस्तुत अनुसन्धान नहीं हो पाया है। संक्षेप में, इन ग्रह क्षेत्रों का प्रभाव निम्नानुसार समझना चाहिए—
(1) केतु क्षेत्र का प्रभाव राहु की भाँति ।
( 2 ) हर्षल क्षेत्र का प्रभाव मंगल क्षेत्र की भाँति ।
(
3 ) नेपच्यून क्षेत्र का प्रभाव चन्द्र क्षेत्र के भाँति ।
(4) प्लूटो क्षेत्र का प्रभाव राहु क्षेत्र की भाँति ।
टिप्पणी- किसी एक ही ग्रह क्षेत्र की स्थिति को देखकर यथार्थ निष्कर्ष