Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
तथा पराये दुःख में सहानुभूति तक प्रदर्शित न करने वाले होते हैं। इस श्रेणी के कुछ लोग कवि तथा लेखक भी होते हैं।
(२) लाल रंग--क्षण में प्रसन्न और काम में स्ट, जम में वृणा तथा प्रेम, आशावादी, तुनुक मिजाजी एवं शरीर में रक्ताधिकता।
(३) पीला रंग-उदर-विकार, मानसिक-क्लेश परन्तु ऊपरी प्रसन्नता, अस्थिर एवं रूखा स्वभाव, आलस्य, संतप्तता एवं उदासी।
(४) काला रंग-कफ प्रकृति, अत्यन्त कोमलता, निस्तेजिता, अस्वास्थ्य एवं शरीर में अशुद्ध-रक्त का प्रवाह है।
(५) भूरा रंग-अस्वस्थ्य, निस्तेजिता, पुरुषत्व शक्ति की कमी तथा अल्पायु।
(६) गुलाबी रंग-उत्साह, प्रसन्नता, स्नेहशीलता, उदारता, दयालुता, न्यायप्रियता, बुद्धिमत्ता, तेजस्विता एवं आशावादिता। ऐसे जातक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते तथा अपनी ही तरह अन्य लोगों का भी ध्यान रखते
९. मस्तक रेखा से ऊपर हथेली का पहला मध्यभाग-राहु क्षेत्र।
१० मस्तक रेखा के नीचे राहु क्षेत्र के ऊपर से मणिबन्ध तक हथेली का दूसरा मध्य भाग-केतु क्षेत्र।
नवीनतम खोजों के आधार पर अब सौर-मण्डल में ७ के स्थान पर १० ग्रहों की उपस्थिति मानी जाती है। प्राचीन ग्रहों की संख्या ७ थी, उनके नाम इस प्रकार हैं--(१) सूर्य, (२) चन्द्र, (३) मंगल, (४) बुध, (५) गुरु अर्थात बृहस्पति, (६) शुक्र और (७) शनि। 'राहु' तथा 'केतु ये दोनों छाया ग्रह हैं। सौर-मण्डल में इन ग्रहों के ज्योतिष्पिण्ड नहीं है। इन्हें पृथ्वी के दोनों छोरों की 'छाया' कहा व माना गया है, परन्तु जातक के जीवन पर इन का प्रभाव भी आकाशीय-ग्रहों जैसा ही पड़ता है, अत: बाद में इन्हें भी ग्रहों को श्रेणी में सम्मिलित करके ग्रहों की कुल संख्या ९ कर दी गई। विगत दो शताब्दियों के सौरमण्डलीय अनुसंधाों के फलस्वरूप आकाश में (१) हर्षल, (२) प्लूटो तथा (३) नेपच्यून नामक तीन ग्रन्य ग्रहों की अवस्थिति और ज्ञात हुई है। इस प्रकार अब ग्रहों की कुल संख्या १२ मानी जाने लगी है। भारतीय ज्योतिषियों ने नवीन अनुसंधान किये गए ग्रहों