Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
है। इससे विपरीत-स्थिति में विपरीत-फल होता है। यदि अन्य पर्वतों की अपेक्षा केवल सूर्य शनि तथा मंगल के पर्वत ही उन्नत हों तथा अंगुलियों एवं रेखाओं की स्थिति भी अच्छी न हो तो जातक कठोर-हृदय, क्रूर, क्रोधी, कपटी, अपयशी, पापी तथा झगड़ालू होता है।
विभिन्न ग्रह क्षेत्रों के प्रभाव के विषय में अलग-अलग विवरण निम्नानुसार समझना चाहिए
गुरु-क्षेत्र-~यदि गुरु का पर्वत सामान्य उन्नत तथा अधिक फैला हुआ न हो तो जातक सदगुणी, धनी, यशस्वी, सुखी, तपस्वी, स्नेही, स्पष्ट वाकी, साहसी तथा शत्रु विजयी होता है। (चित्र ३८)।
गुरु का पर्वत अत्यधिक उन्नत हो तो जातक मन्द बुद्धि दुर्गुणी, क्रोधी, धूर्त, ईष्यालु तथा कठोर स्वभाव का होता है। परन्तु उसकी स्त्री गुणवती और रूपवती होती है। वह पुत्र-प्राप्ति की कामना से पर-पुरुष गमन
भी कर सकती है। गुरु पर्वत बहुत चिपटा हो तो जातक को धर्म तथा गुरुजनों में श्रद्धा नहीं होती। यदि गुरु पर्वत निम्न (दबा हुआ) हो तो जातक दुराचारी, स्वार्थी, शंकालु तथा चिड़चिड़े स्वभाव का होता है और उसकी सुन्दर पत्नी प्राय: पर पुरुष में अनुरक्त रहती है। यदि गुरु के पर्वत का अभाव हो तथा शनि का पर्वत अधिक उन्नत हो तो जातक अपने कुटुम्ब तथा समाज से घृणा करता है। यदि गुरु पर्वत अत्यधिक उन्नत हो तथा अंगुलियों के अग्रभाग नुकीले हों तो जातक अन्ध विश्वासी होता है। यदि अत्यधिक उन्नत गुरु क्षेत्र के साथ अंगुलियां चौकोर हो तो अत्यन्त क्रूर होता है।
गुरु पर्वत शनि क्षेत्र की ओर झुका हो और उसे दबाये हो तो जातक सद्गुणी, महापुरुष होता है। केवल शनि क्षेत्र की ओर झुका हुआ ही हो तो विद्वान, सुखी, शान्त, शत्रुजयी तथा परोपकारी होता है। ऐसे पर्वत वाली स्त्रियाँ सुशील, सद्गुणी, परन्तु कृपण एवं रुग्ण होती हैं।