Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
होती हैं। जहाँ से वह जीवन रेखा शुरू होती हैं उसके उल्टे सामने यह निशान यह बतलाता हैं कि उस मनुष्य ने उस समय अपने जीवन में अपना भाग्य बनाने के लिए दृढ़ निश्चय कर लिया हैं, और अपने को वातावरण से स्वतन्त्र तथा उन मनुष्यों से जो कि उसे घेरे हुए हैं बनाने के लिये हैं यह सदैव एक सफलता का चिह्न है जबकि यह रेखा भाग्य रेखा को मिलाती हैं विशेष कर जब कि उस मिलने के स्थान पर भाग्य रेखा अधिक मजबूत हो। दूसरी तिथि उस समय जबकि जीवन रेखा को नीचे की ओर को पढ़ते हो जीवन रेखा पर ही होती हैं, इस निशान से भाग्य में वातावरण का बार-बार आना पाया जाता हैं मान लो किसी ने यह रेखा अपने २६ वें वर्ष में भाग्य रेखा की ओर जाती हुई देखी है तो वह वातावरण या घटन फिर करीब दुगुनी उम्र में यानी ५२ वें वर्ष में जो कि इस घटना की ठीक तिथि जबकि जीवन रेखा को पढ़ते हों तो होती हैं। पहले स्थान पर प्रायः यह पाया जाता हैं। कि उस मनुष्य ने अपने आरम्भिक काल में कोई बन्धन तोड़ा हो और फिर वैसी ही घटना उसकी बाद की जिन्दगी में फिर से वह मनुष्य किसी बन्धन से छुटकारा पाता हो और फिर वह अपने लिए सांसारिक जीवन में घुसता हैं।
वह विशेष चिह्न प्रायः शादी सम्बन्धी बातों को निश्चित करने में मदद करता है । वह मनुष्य या स्त्री स्पष्टतया अपनी स्वतन्त्रता अधिक चाहता है। और गृहस्थ को छेड़ता है और फिर से दुनिया से बाहर जाता है। तथा अपना जीवन संग्राम स्वयं तय करता है। जैसे कि उसने अपने बाल्यकाल में अपना अस्तित्व रखने के लिये किया था। जबकि शायद उसने अपने पिता के अधिकार को छोड़ दिया और स्वयं आगे बढ़ा था ।
जबकि ये रेखायें शनि के उभार की ओर को काटती हुई दिखाई दें और एक स्वतन्त्र रेखा के सामने भाग्य रेखा को न मिलाती हुई जाती हो तो वह मनुष्य दूसरा भाग्य रखता है जबकि यह रेखा जीवन रेखा को छेड़ती है । तो उसके शुरू होने की प्रथम तिथि बताती है यदि एक रेखा अच्छी वाली है तो वह अपनी तिथि जबकि जीवन रेखा नीचे को बढ़ जाने देती है जहाँ कि यदि रेखा अच्छी हो तो वह एक-दूसरे भाग्य का सफल अग्रभाग दिखाती है। जो कि अपनी दुर्बलता