Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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हस्त रेखा ज्ञान
मंगल के उभार की प्रवृत्तियों से अधिक आकर्षित होती हैं। तथा यह प्रेम की
और अधिक प्रवृत्ति दिखाते हुए नई विचारात्मक सूक्ष्मता को स्थान देता हैं वनिस्पत उनके जो कि मस्तक रेखा सीधी हथेली के बीच से जाती हुई रखते हैं, इसलिए यह देखा जाता है हर एक चिह्न इस विद्या का स्वभाव पर प्रभाव एक तार्किक दृष्टि से भी स्पष्ट किया जा सकता हैं यह इस विद्या को एक उच्च स्थान पर ला रखती हैं। वनिस्वत उसके जबकि वह अन्धविश्वास पर निर्मित होता हैं।
यदि यह जीवन रेखा वृहस्पति के उभार की ओर ऊंची उठी हुई हो (४-४ चित्र ९) तो मनुष्य अपने ऊपर अधिक अधिकार रखता है और उसका जीवन उसकी इच्छा प्रकृति से अधिक प्रभावित हैं। जबकि यह जीवन रेखा हथेली में अधिक नीचे को शुरू होती हैं। (५-५ चित्र ९) विशेष कर शुक्र के उभार से, तो यह स्वभाव के ऊपर काबू रखता हैं। जबकि यह चिह्न, नौजवान मानों के हाथों पर मिले तो वे अधिक झगड़ालू अधिक अज्ञानकारी तथा अपनी पढ़ाई के विषय में कम इच्छायें रखता हैं।
जबकि जीवन रेखा पर बहुत सी ऊपर को उठी हुई रेखायें हैं यद्यपि वे बहुत ही छोटी हैं, तो वह जीवन अधिक शक्तिपूर्ण होता हैं। जिस उम्र में यह रेखायें जीवन रेखा से निकलती हैं। उस उम्र में वह मनुष्य कोई विशेष कार्य जिधर को उसके भाग्य का विशेष कार्य उस समय पर होता हैं। जबकि ये रेखायें वृहस्पति के उभार पर या उसकी ओर को जाती दिखाई दें (१-१ चित्र १०) तो ये जीवन में उन्नति की इच्छा प्रकट करती हैं। विशेष कर कुछ स्थान पर दूसरों पर अधिकार तथा हुक्म करने की शक्ति भी देती हैं। यदि उनमें से कोई एक रेखा मस्तक रेखा से बन्दी या रोकी हुई हो (२-२ चित्र १०) तो वह मनुष्य कुछ अपनी बेवकूफी या मानसिक गलती से उस कार्य को जो कि शुरू हुआ हो, सफल होने से रोकती हैं तो मनुष्य का प्रेम उसके विशेष कार्य में बाधा पहुंचाता हैं या पहुंचावेगा चाहे रेखा किसी भी दशा में हो यदि इनमें कोई रेखा भाग्य रेखा को काटती हुई मिलती हैं (३-३ चित्र १०) तो वह स्पष्ट दो तिथियाँ जो कि गम्भीर अर्थ रखती हैं, बतलाती हैं प्रथम तिथि जो कि वह बतलाती है। जब कि यह रेखा जीवन रेखा को छोड़ती है। यह भाग्य रेखा की ओर शुरू होने की तिथि स्वयं भाग्य रेखा पर बिल्कुल