Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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व्रजेत) यदि नील वर्ण का हो (स्निग्धं) स्निग्ध हो तो (तदा) तब उसका (फलं ज्ञेयं) फल अच्छा जानना चाहिये (नागरं जायते तदा) और नगरवासियों के लिये भी अच्छा है।
भावार्थ-उत्तर मार्ग में यदि शनि नील वर्ण का होकर गमन करता हो, एवं स्निग्ध हो तो उसका फल नगरवासियों के लिये अच्छा होता है, शुभ रूप होता है॥१०॥
रतिप्रधाना मोदन्ति राजानस्तुष्ट भूमयः।
क्षमां मेघवीं विन्द्यात् सर्व बीज प्ररोहिणीम्॥११॥ (रतिप्रधाना मोदन्ति) रति प्रधान व्यक्ति अमोद-प्रमोद करते हैं (राजानस्तुष्ट) राजा सन्तुष्ट होते है (क्षमां मेघवती विन्द्यात्) पृथ्वी मेघों से भर जाती है (भूमय: सर्व बीजप्ररोहिणीम्) भूमि में सब बीजों का वपन करना चाहिये।
भावार्थ रति प्रधान व्यक्तियों को आनन्द होता है, राजा सन्तुष्ट होते हैं, पृथ्वी बादलों से भर जाती है, याने वर्षा खूब होती है, इसलिये भूमि में सब प्रकार के बीज बोने चाहिये॥११॥
मध्यमे तु यदा मार्गे कुयादस्तमनोदयौ।
मध्यमं वर्षणं सस्यं सुभिक्षं क्षेममेव च ॥१२॥ (यदा) जब शनि (मध्यमे मार्गे) मध्यम मार्ग में (अस्तमनोदयौ कुर्याद) उदय और अस्त हो (तु) तो (मध्यमं वर्षणं सस्य)एवं मध्यम वर्षा हो और मध्यम ही धान्य हो (सुभिक्षं क्षेम मेव च) और सुभिक्ष क्षेम हो।
भावार्थ-यदि शनि मध्यम मार्ग में उदय या अस्त हो तो वर्षा और धान्य मध्यम होता है, सुभिक्ष, क्षेम कुशल होता है॥१२॥
दक्षिणे तु यदा मार्गे यदि स नीलतां व्रजेत्।
नागरा यायिनञ्चापि पीडयन्ते च भटागणा: ।।१३।। (यदा) जब शनि (दक्षिणे मार्गे) दक्षिण मार्ग में (यदि स नीलतां व्रजेत्) यदि वह नीला होकर गमन करे (तु) तो (नागरा) नगरवासी (यायिनञ्चापि) और