Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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विंशतितमोऽध्यायः
चतुर्दशानां मासानां विन्द्याद् वाहनजं भयम्।
अथ पञ्चदशे मासे बालानां भयमादिशेत् ॥ ४॥ उसी प्रकार राहु (चतुर्दशानां मासानां) चौदह महीने में (वाहनजंभयम् विन्द्याद्) वाहनों को भय करता है ऐसा जानो (अथपञ्चदशे मासे) और पन्द्रहवें महीने में (बालानां भयमादिशेत्) स्त्रियों को भय उत्पन्न करेगा।
भावार्थ-वही राहु चौदह महीने में वाहनों को भय और पन्द्रहवें महीने में स्त्रियों को भय करेगा,ऐसा आप समझो। ४॥
षोडशानां तु मासानां महामन्त्रिभयं वदेत् ।
अष्टादशानां मासानां विन्धाद् राज्ञस्ततो भयम्॥५॥ (षोडशानां तु मासानां) उसी प्रकार सोलहवें महीने में (महामन्त्रिभयं वदेत) महामन्त्रि को भय होगा, (अष्टादशानां मासानां) अठारहवें महीने में (राज्ञस्ततो भयम् विन्द्याद्) उसी प्रकार राजा को भय होगा।
भावार्थ--सोलहवें महीनेमें मन्त्री को भय और अठारहवें महीने में राजाको भय उत्पन्न होगा, ऐसा समझों॥५॥
एकोनविंशकं पर्वविंश कृत्वा नृपं वधेत्।
अत:परं च यत् सर्वं विन्द्यात् तत्र कलिं भुवि॥६॥ (एकोनविंशकं पर्व) उन्नीसवें में व (विशं कृत्वा नृपं वधेत्) बीसवें को पार करने में राजा का वध करता है (अत:परं च यत् सर्वं) इससे आगे जो भी समय रहेगा वह (सर्वं तत्र कलिं भुवि विन्द्यात्) सब वहाँ कलियुग की महिमा है ऐसा जानो।
भावार्थ--उन्नीसवां और बीसवां महीना राजा का वध करता है, और इसके आगे अगर राहु रहे तो ऐसा समझो यह सब कलियुग की महिमा है॥६॥
पञ्चसंवत्सरं घोरं चन्द्रस्य ग्रहणं परम्।
विग्रहं तु परं विन्द्याद् सूर्य द्वादश. वार्षिकम् ।।७।। (परम् चन्द्रस्य ग्रहणं घोरं) परम चन्द्र ग्रहण के (पञ्चसंवत्सरं) घोर संकट