Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
| भद्रबाहु संहिता ।
वृषभ करि महिषासभ महिषादिकविविध रूपाकारैः ।
पश्येन् स्वछायां लघुमरणं तस्य सम्भवति ॥५४॥ यदि कोई व्यक्ति (स्वछायां) अपनी छाया को (वृषभ, करि, महषिरासभ) बैल, हाथी, भैंस, गधा, (महिषादिक विविधुरूपाकारैः) महिषादि नाना प्रकार के विविध रूपों में देखे तो (तस्य लघुमरणं सम्भवति) उसका शीघ्रमरण हो जाता
भावार्थ-यदि कोई रोगी अपनी छाया को बैल, हाथी, घोड़ा, महिष, बकरा, कौआदि नाना रूपों में देखता है तो उसका शीघ्र मरण होगा, ऐसा जानो ॥५४॥
छायाबिम्बं ज्वलत्प्रान्तं सधूमं वीक्ष्यते निजम्।
नीयमानं नरैः कृष्णैस्तस्य मृत्युर्लधुर्मत:॥५५॥
जो कोई रोगी (निजम्) अपनी (छायाबिम्बं) छाया बिम्ब को (ज्वलनान्तं) जलता हुआ देखे (सधूमंवीक्ष्यते) और वह धूम सहित देखे एवं (कृष्णै: नरै नीयमान) काले मनुष्य के द्वारा ले जाया जा रहा हो (तस्य मृत्युर्लधुर्मतः) तो उसकी मृत्यु शीघ्र हो जाती है।
___ भावार्थ-जो कोई रोगी अपनी छाया को जलती हुई देखे एवं धूम सहित देखे और काले मनुष्य के द्वारा स्वयं को ले जाते हुऐ देखे तो उसकी मृत्यु शीघ्र होगी।॥ ५५॥
नीलां पीतां तथा कृष्णां छायां रक्तां पश्यति ।
त्रिचतुः पञ्चषडानं क्रमेणैव स जीवति ।। ५६॥ (नीलां पीतां तथा कृष्णां) नीली, पीली तथा काली, (छायां रक्तां पश्यति) अपनी छाया को लाल देखता है तो (क्रमेणैव) क्रमसे (त्रिचतु: पञ्चषात्रं) तीन, चार, पाँच और छह रात्रि तक (स जीवति) वह जीता है उससे अधिक नहीं।
भावार्थ-जो रोगी क्रमश: अपनी छाया को नीली देखे तो तीन दिन की आयु है पीली देखे तो चार दिन जीवत रहेगा, काली देखे तो पाँच दिन की आयु लाल छाया दिखे तो छह दिन की आयु रह जाती है।। ५६॥