Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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(तत्थहोइदेसम्मि) जिस देश में (परचक्क भवो घोरो मारी वा) उपर्युक्त वर्षा हो तो परमात्र का भय, गोर मनी रोग, राजिगासो वा) नगर का नाश वा (देशविणासोयणियमेण) देश का नाश नियम से होगा।
भावार्थ-जिस नगर में उपर्युक्त वर्षा होती है, तो वहाँ पर भयंकर मारी रोग होता है, या परचक्र के आक्रमण से नगर या देश का विनाश होगा॥६८।।
अण्णह कालेवल्लीफुल्लंती महणुव्व सुरोयाणं।
सेठव्वा असदीसइ देशविणासो णसंदेहो।।६९॥ (अण्णहकाले) अकाल में यदि (वल्लीफुल्लंती) लतादि फलती फूलती दिखे (महणुब्ब सुरोयाणं) वा वृक्षों से खून की धारा बहती हुई दिखे (सेठव्वा असदीसइ) तो समझना चाहिये की कुछ ही काल में (देशविणासो णसंदेहो) विश्व का विनाश होगा इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थ-अकाल में यदि लतादि फलती-फूलती हुई दिखाई तो समझना चाहिये। कि थोड़े ही दिनों में देश का विनाश होगा, इसमें सन्देह नहीं है।। ६९॥
देवउत्पातयोग तित्थयरछत भंगे रथभंगे पायहत्थसिर भंगे।
भामंडलस्स भंगे शरीर भंगे तहच्चेव॥७०।। (तित्थयरछत भंगे) तीर्थंकर का छत्र भंग होने पर (रथभंगे पायहत्थसिर भंगे) रथ का भंग, पाँव-हाथ, सिर भंग, (भामंडलस्स भंगे) आभा मण्डल का भंग (शरीर भंगे) शरीर का भंग होने पर (तहच्चेव) क्या फल होता है उसको कहते हैं।
भावार्थ-तीर्थंकर का छत्र भंग, रथ भंग, पाँव-हाथ भंग, आभा मण्डल भंग, शरीर के भंग होने पर क्या फल होता है उसको कहते हैं।७०॥
ए एदेसस्सपुणो चलणेतहणच्चणेय णिग्गमणे।
जे हुत्तिय तद्दोसा ते सव्वे कत्तइस्सामि॥७१॥ (ए एदेसस्सपुणो) जिस-जिस देश में पुनः (चलणेतहणच्चणे यणिग्गमणे) प्रतिमा के चलने वा स्थिर प्रतिमा के भंग रूप (जे हुत्तिय तद्दोसा) जो दोष होता है (ते सब्वे कत्तइस्लामि) उन सबको मैं कहने की इच्छा करता हूँ।