Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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हस्त रेखा ज्ञान
हैं (ससा खतिआण खज्जकरी भणिया) क्षत्रियों को राज्य दिलाने वाली होती है। (वेसाणंअत्थकरी) श्यों को धन प्राप्त करता है (सुखलोआणं सुक्खकरी) और शूद्रों को सुख प्राप्त कराती है।
भावार्थ--यही रेखा ब्राह्मणों के हाथ में हो तो वेद का ज्ञान कराती है। क्षत्रियों के हाथों में हो तो राज्य दिलवाती है, वैश्यों के हार्थों में हो तो धन प्राप्त कराती है। शूद्रों के हाथों में हो तो सुख प्राप्त कराती है।। 19॥
मणिबंधाओ पयडा संपत्तमणामि अंगुलिं रेहा।
सा कुणइ सस्थवाहं नखसयपुज्जियं पुरिसं। 20 ॥ (रहा) यदि रेखा (मणिबंधाओपयडा) मणिबन्ध से प्रकट होकर (संपत्तमणामिअंगुलिं) अनामिका अंगुलि तक जाती हो तो (सोसत्यवाहं कुणइ) मनुष्य को सार्थवाहक बना देती है (नर वइसयपुज्जियपुरिसं) और हजारों राजा उसकी पूजा करते है।
भावार्थ-यदि मणिबन्ध से यह रेखा प्रकट होकर अनामिका अंगुलि तक जाती है, तो मनुष्य को किसी भी दल का नायक बनाती है, और सैकड़ों राजा उसकी पूजा करते हैं। 20॥
उर्द्ध रेखा का ज्ञान व फल व भाग्य रेखा मणिबंधाओ पयडा पत्ता चरिमंगुलिं तु जा रहा।
सा कुणइ जससमिद्धिं सिटि वा विभव संजुत्तं ॥21॥ (जा रेहा) जो रेखा (मणिबंधाओंपयडा) मणिबन्ध से प्रकट होकर (चरिमंगुलिंतुपत्ता) छोटी अंगुलि तक जाती है (सा) तो वह उस मनुष्य को (जससमिद्धिं) यश समृद्धि (सिढ़िवाविभवसंजुत्तं कुणइ) प्राप्त कराती है या सेठ हो तो उसका खूब वैभव बढ़ता है।
भावार्थ-जो रेखा मणिबन्ध से प्रकट होकर छोटी अंगुलि तक जाती है तो वह मनुष्य को खूब समृद्धि प्राप्त कराती है, अगर वह सेठ हो तो उसका बहुत वैभव बढ़ाती है।। 21॥
यहाँ आगे भाग्य रेखा के बारे में अन्य सामुद्रिक लेखकों का भी विस्तृत वर्णन देता हूँ।