Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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हस्त रेखा ज्ञान
विज्जाकुलधणार रेहविगं ॐ ठरेहाये।
पंच वि रेहाओ करे जणस्स पयडंति पुवकमं॥13॥ (करे) हाथों की (पंच वि रेहाओ) पांच रेखाएँ (पुत्वकमं जणस्स पयडंति) उसके पूर्व जन्म को सूचित करती है (रहतिअं) उसमें तीन रेखा (विज्जाकुलधण रूव) विद्या कुल और धन की प्राप्ति के लिये हैं, और (आउ उरेहाओ) एक आयु रेखा और एक अर्द्ध रेखा है।
भावार्थ-हाथों की पांच रेखाऐं उसके पूर्व जन्म को सूचित करने वाली होती है। उसमें तीन रेखा तो विद्या कुल, धन की प्राप्ति कराती है। और एक आयु रेखा एक अर्द्ध रेखा है।। 13 ।।
विद्या रेखा फल मणिबंधाओ रेहा अंगुट्ठ पएसिणीण मज्झगया।
सा कुणइ सत्थजुत्तं विण्णाणविअक्खणं पुरिसं ।। 14॥ (रेहा) रेखा अगर (मणिबंधाओ) मणिबंध से निकल कर (अंगुल पएसिणीणमज्झगया) अंगुष्ट और प्रदेशिनी के मध्य जाती है तो समझो (सा) वह (पुरिसं) पुरुष को (सत्थजुत्तं) शास्त्र ज्ञान व (विण्णाणविअक्खणं कुणइ) विज्ञान से युक्त करती है।
भावार्थ-रेखा अगर मणिबंध से निकल कर अंगुष्ट और प्रदेशिनी के मध्य तक जाती है। तो समझो वह मनुष्य रेखा शास्त्र ज्ञान व विज्ञान से युक्त बना देगी ।। 14॥
कुल रेखा विषयक फलम् मणिबंधाओ पयडा पएसिणी जाव जाइ जस रहा।
बहुबंधुसमाइण्णं कुलवंसं णिद्दिसे तस्स ॥ 15।। (जस रेहा) जिस मनुष्य के हाथ की रेखा (मणिबंधाओ पयडापएसिणी जाव जाइ) मणिबंध से प्रकट होकर प्रदेशिनी तक जावे तो (तस्य) उस मनुष्य को (बहुबंधुसमाइण्णं कुलवंसंणिद्दिसे) बहुत बंधु से युक्त कराती है। और कुलवंश वृद्धि की द्योतक है, ऐसा निवेदन करे।
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