Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
निमित्त शास्त्रम्
बहुबरिसड़ जड़ इंदो सस्साणय तस्स होइणिप्पती।
सोमाए जइ दीसइ सीयल वायुव्व बिज्जू व॥१६१ ।। (सोमाए जइदीसइ) यदि पश्चिम दिशा में चमकती हुई (विज्जूब) बिजली दिखे एवं (सीयल वायुब्ब) ठण्डी हवा चले और (बहू बरिसइ जइ इंदो) बहुत वर्षा हो (सस्साणय तस्स होइणिप्पत्री) तो धान्यों की उत्पत्ति अच्छी होती है।
भावार्थ-यदि पश्चिम दिशा में बिजली चमके एवं ठण्डी हवा चले, वर्षा अच्छी हो, तो धान्यों की उत्पत्ति अच्छी होती है॥१६१॥
अशाशनाक्षिणासं चौराण भयं अहणिवेदेइ।
ईसाणीणु सुभिक्खं रोगो हाणीय वाहिणासयरी॥१२॥ (ईसाणीसु) ईशान कोण में बिजली (सभिक्षक्खं रोगो हाणीय) सुभिक्ष वा रोग से हानि (अहवारायविणासं) अथवा राजा का विनाश होगा, (चौराण भयं) चोरों का भय होगा, (वाहिणा सयरी) वा नाश करने वाली होती है (अहणिवेदेइ) ऐसा निवेदन करते है।
भावार्थ-ईशान कोण की बिजली सुभिक्ष कारक होती है, किन्तु चोरों का भय एवं राजा का नाश व रोग कारक होता है।। १६२॥
मेघयोग अह मग्गासिर देवे वरसइ जत्थेय देसणयरम्मि।
सो मुयइ जिट्ठमासे सलिलंणियमेण तत्थेव ॥१६३॥ (जत्थेयदेसणयरम्भि) जिस देश या नगरी में (अह मग्गासिरदेवे) मगशिर महीने के अन्दर (वरसइ) वर्षा हो तो (तत्थेवणियमेव) वहाँ पर नियम से (सोमुयइजिट्टमासे सलिलं) ज्येष्ठ मास की वर्षा का नाश होता है।
भावार्थ-जिस देश में या नगरी में मृगशिर महीने में वर्षा हो तो वहाँ पर नियम से ज्येष्ठ मास की वर्षा का नाश होता है।॥१३॥
अहपौषमास वरिसइ विज्जलउण हयलम्मि जइदेवो।
छट्टे मासे वरिसइ बहुयंचव पुच्चए तत्थ ।। १६४॥ (अहपौष मास वरिसइ विज्जलउण) यदि पौषमास में बिजली चमक कर